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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं भारतके लोगोंको विपत्तियों और संकटोंसे मुक्ति दिलानेके लिए ही चरखेका उपदेश दे रहा हूँ। चरखके साथ-साथ हमारी मुक्तिके लिए अन्य जरूरी कार्योंको भी हाथमें लिया जा सकता है। चरखा निराशाके मध्य आशा बँधाता है। इन्सान अपना दुश्मन और अपना दोस्त आप होता है। जब आप कठिनाईमें हों, ईश्वरको याद करें। ईश्वर इतना निर्दयी है कि जबतक आप कर्त्तव्यपरायण नहीं होते, तबतक आप किसी भी कार्यमें उससे सहायताको आशा नहीं कर सकते। मैं आग्रहपूर्वक सबसे कहता हूँ कि ईश्वरको याद रखें, और कार्य करते जायें।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, १३-५-१९२५
 

३५. भाषण : चाँदपुरकी राष्ट्रीय पाठशालामें

१० मई, १९२५

महात्माजी राष्ट्रीय पाठशालामें छात्रोंसे मिले। वहाँको कार्यवाही अत्यन्त दिलचस्प थी। उन्होंने पहले उन लड़कोंको बुलाया जो अपनेको सबसे अधिक दुष्ट मानते थे। पहले तो कोई भी आगे नहीं आया; बादमें कुछ लड़कोंने आगे आकर स्वीकार किया कि वे दुष्ट हैं। इसके बाद महात्माजीने उन लड़कोंको बुलाया जो अपन-आपको मूढ़ और बुद्धिहीन समझते थे। बहुत-से लड़के आगे आ गये। इसपर काफी हँसी हुई। इसके बाद महात्माजीने दुष्ट तथा अज्ञानी लड़कोंके गुणोंका वर्णन किया और उन्हें कुछ हिदायतें दी, जिन्हें अत्यन्त ध्यानसे सुना गया। उन्होंने छात्रोंसे कहा कि आप देशको बड़ती हुई गरीवीको समझें। जो लड़के चरखा कातते हैं, वे इसका अदुभव कर सकते हैं। इसीलिए मैं आपसे आग्रह करता हूँ कि आप प्रतिदिन सूत कातनेकी पूरी कोशिश करें। जो लड़का अनेक निराशाओंके बावजूद अपने सामने कोई आदर्श नहीं रखता, वह नटखट लड़का है; और मूढ़ वह है जो खाली हाथ बैठे रहनमें सन्तोष मानता है। जितना ही अधिक कोई छात्र सूत कातेगा उतना ही अधिक वह अनुभव करेगा कि उसने अपने कर्तव्यका पालन किया है। स्वराज्यके संघर्षमें ऐसे लड़कोंका दल अपरिहार्य है। अन्तमें मैं आपसे कहता हूँ कि आप अपने माता-पिताका आदर करें, अपने अध्यापकों तथा अपने परिवारके सभी सदस्योंके प्रति प्रेमभाव रखें और अपने साथियोंसे मित्रतापूर्ण व्यवहार करें। मेरा हार्दिक आशीर्वाद आपके साथ

[अंग्रेजीसे]
अमृतवाजार पत्रिका, १३-५-१९२५