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३६. भाषण : चाँदपुरकी सार्वजनिक सभामें[१]

१० मई, १९२५

गांधीजीने शुरूमें ही कहा कि चूँकि इस सभामें मुसलमानोंको संख्या ज्यादा है,इसलिए मैं चाहता हूँ कि मैं हिन्दू-मुस्लिम एकताके सम्बन्धमें अली भाइयोंसे हुई अपनी बातचीतके बारेमें आपको कुछ बतला दूँ। उन्होंने निर्णय किया है कि हमें आपसमें फिर कभी नहीं लड़ना चाहिए। जबतक हम आपसमें मेलजोलसे नहीं रहेंगे तबतक स्वराज्य प्राप्त करना असम्भव है। आप लोगोंको संकल्प कर लेना चाहिए कि आपसमें नहीं लड़ेंगे और आपको चरखा चलाना चाहिए। यहाँ हिन्दू या मुसलमान, कोई भी चरखा नहीं चला रहे हैं।

गांधीजीने प्रसंग उठने पर कहा कि मुसलमान लोग कम संख्याम खद्दर पह्नते हैं और चरखा भी कम चलाते हैं। मैं आपसे सविनय निवेदन करता हूँ कि आप अधिक काम करें। आप लोगोंको याद रखना चाहिए कि पूर्वी बंगालकी बाढ़के समय प्रफुल्लचन्द्र रायने कितना शानदार काम किया था और किस प्रकार उन्होंनेचरखेके जरिये बहुत-सी मुसलमान बहनोंकी सहायता की थी। मैं मुसलमान बहनोंसे भी चरखा चलाने के लिए कहता हूँ। करोड़ों हिन्दू भूखों मर रहे हैं। उनके लिए चरखा चलाने के सिवा और कोई विकल्प नहीं। इसी कारणसे मैं भारतका दौरा कर रहा हूँ और मैं उनसे चरखा चलाने के लिए कह रहा हूँ। तभी, केवल तभी आप लोग देशसे गरीबी दूर कर सकते हैं। जिससे भी मैंने कहा है उसने स्वीकार किया है कि कातना चाहिए और विदेशी कपड़ेका बहिष्कार करना चाहिए। फिर भी वे स्वदेशी कपड़ेका उपयोग नहीं करते। इसका कारण यह है कि वे अपने देशको प्यार नहीं करते और दूसरी बात यह है कि उनके हृदयमें अपने देशके प्रति कोई सम्मान नहीं।

अस्पृश्यताका उल्लेख करते हुए, गांधीजीने कहा कि नामशूद्रोंको बहुत कष्ट उठाना पड़ रहा है, यद्यपि उतना अधिक नहीं जितना कि दक्षिण भारतमें।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, १२-५-१९२५
 
  1. इसके बाद गांधीजीने महिलाओंको एक सभामें भी भाषण दिया था।