पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/१०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

३७. पत्र : बृजकृष्ण चाँदीवालाको

रविवार [१० मई, १९२५ या उसके पश्चात्][१]

भाई ब्रिजकिसन,

तुमारा पत्र मीला। मेरा तुमारे पर विश्वास है परंतु इस तरह किसीके लीये द्रव्यकी सहाय मांगना मेरे क्षेत्रके बाहर है। यदि मैं इस तरह धनिक मित्रोंसे व्यवहार रखुंँतो मेरा संबंध अस्वच्छ बन जायगा। इस काम में तुमारे हि पुरुषार्थसे तुमारे संकटका इलाज कर लेना चाहिये।

बापूके आशीर्वाद

मूल पत्र ( जी॰ एन॰ २३७०) की फोटो-नकलसे।
 

३८. एक कार्यकर्त्ताकी कठिनाई

[११ मई, १९२५]

मेरी बंगालकी यात्राके बीच मुझे अनेक सुझाव दिये जा रहे हैं। मैं सबको कार्यान्वित भले ही न कर सकूँ; लेकिन मैं उन्हें पसन्द करता हूँ। एक सच्चे कार्यकर्त्ताका सुझाव है।[२]

मैं ये टिप्पणियाँ अपने मौनवारको[३] लिख रहा हूँ। खादी प्रतिष्ठानके संचालक सतीश बाबू मेरे पास बैठे हैं। इसलिए मैंने कार्यकर्त्ताके सुझावको, जवाबके लिए उनके सुपुर्द कर दिया है, क्योंकि वे बंगालकी परिस्थितियोंको, जितना खुद मैं जाननेकी आशा कर सकता हूँ, उसकी अपेक्षा अधिक जानते हैं। उनका उत्तर यह है :

पत्र-लेखकका खयाल है कि बंगालमें खादीके प्रचारकी वास्तविक कठिनाई रुईको ऊँची कीमत है। जिस इलाजका सुझाव दिया गया है वह है प्रोत्साहन देना।
कपास की खेती शुरू करना तथा उसे बंगाल में निश्चित रूपसे यह कठिनाई है कि वहाँ कपास सभी जगह पैदा नहीं की जाती। लेकिन एकमात्र यही कठिनाई नहीं है और न ही यह कोई गम्भीर कठिनाई है। मैंचेस्टर अपने कारखानोंके लिए कई अमरीका और बम्बईसे खरीदता है और उनका तैयार कपड़ा भारतको भेजता है। निश्चय ही बंगालको जितनी रुई चाहिए उतनी वह भारतकी किसी भी रुईको मण्डीसे
  1. लगता है कि यह पत्र ३ मई, १९२५ को चांदीवाला को लिखे पत्रके बाद लिखा गया था; उसके बादका रविवार १० मईको पड़ा था।
  2. यहीं नहीं दिया जा रहा है।
  3. ११–५–१९२५।