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एक कार्यकर्ताकी कठिनाई

खरीद सकता है। बंगालमें लाखों रुपयेकी कपास पैदा की जाती है तथा चट- गाँव और कलकत्ताके बंदरगाहोंसे बाहर भेजी जाती है। बंगाल जितनी कपास पैदा करता है उसका एक हिस्सा भी घरोंमें सूत कातने के लिए इस्तेमाल नहीं करता, वह अपनी चटगाँव और कोमिल्ला-रुई घरों में सूतकी कताईके लिए इस्तेमाल कर सकता है तथा उसके अलावा जितनी और आवश्यक हो, बिहार तथा उत्तर प्रदेशके बाजारोंसे खरीद सकता है।

खादीके प्रसारमें वास्तविक कठिनाई न तो रुईको ऊँची कीमते हैं और न कपासको खेतीका न किया जाना। खादीके प्रसार के लिए आवश्यकता है सूत कातनेकी तथा खादीके इस्तेमालकी इच्छाको तथा एक ऐसे संगठन की जो इस इच्छाको बढ़ाये तथा उसको पूर्ति करे।

वह आश्रम जहाँसे लेखकने टिप्पणी भेजी है कपासको 'सस्ते' दामोंमें अर्थात् उचित बाजार-भावसे बेचनेका केन्द्र बनाया जा सकता है। आश्रम एक आदमीको कातने तथा धुननेका प्रशिक्षण देकर दक्ष बना सकता है तथा फिर पड़ोसकी बहनोंके सम्मुख इन कलाओंको प्रदर्शित करके यह बता सकता है कि अच्छी पूनियों तथा एक अच्छे चरखेसे सूत कातनमें कितना आनन्द आता है। जब सूत कातना क्लेशप्रद हो जाता है तभी खादी-प्रसारकी काल्पनिक कठिनाइयाँ दिखाई पड़ती है।

यदि बंगालकी बहनोंको उन संस्थाओंकी सहायता मिले जिनके चरखा- विशेषज्ञ सेवा करने में रुचि रखते हैं तो फिर हर कठिनाई दूर हो जायेगी और फिर में किसानोंको बिना किसी प्रलोभनके कपासकी खेती करते भी देख संकता हूँ।

कातना एक मुख्य प्रक्रिया है। उसके पहले तथा बाद दूसरे काम करने पड़ते हैं। कपासकी खेती करना, कपास ओटना तथा रुई धुनना पहले किये जाते हैं तथा सूत कातना और कपड़ा बुनना बादमें आते हैं। हमें अभी अपना ध्यान कुशलतापूर्वक धुनने, कातने, तथा बुननेतक सीमित रखना चाहिए। कुशल संस्थाओंके दृढ़ संकल्प कार्यकर्ताओं द्वारा किये गये गम्भीर प्रयत्नसे सभी कठिनाइयाँ दूर हो जायेंगी तथा बंगालमें सूत कातनका प्रयोग सफल हो जायेगा। निकट भविष्यमें ही मैं ऐसा दिन देखनेकी आशा करता हूँ।

मैं इस उत्तरका पूर्ण समर्थन करता हूँ और साथ ही यह भी कहना चाहता हूँ कि सूत कातनेके लिए पुरुषों में भी उतने ही संगठनकी आवश्यकता है जितनी कि स्त्रियोंमें। बिना पुरुषोंके संगठनके स्त्रियोंसे सहयोग लेना अत्यन्त कठिन है। हम सूत कातनेवाली स्त्रियोंको पैसा लेकर सूत कातने के लिए तभी संगठित कर सकते हैं जब हमारे पास स्वेच्छया सूत कातनेवालोंका दल हो। हम केवल उनके पतियों अथवा पिताओं अथवा भाइयोंके जरिये ही चरखमें सुधारकी आशा कर सकते हैं। कार्यकर्ताओं- में ज्यादातर पुरुष हैं। अत: वे यह भी नहीं देख सकते कि स्त्रियाँ किस तरह कार्य