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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कर रही हैं। लेकिन कताईकी प्रदर्शनियोंको देखकर मैं कल्पना कर सकता हूँ कि पर्दे के पीछे क्या हो रहा है। उनके चरखोंको यदि सुचारु रूपसे देखभाल की जाये तो अबसे दुगुना सूत प्राप्त किया जा सकता है। इसका मतलब हुआ बहुत थोड़े ही प्रयाससे दूनी आमदनी। कभी-कभी कातने वालोंको जर्जर चरखोंपर, जिनमें तकुओंके स्थानमें भारी छड़ें लगी हुई हैं, सूत कातते देखकर दुःख होता है। यदि चरखे मजबूत बनाये जायें तथा छड़ोंके स्थानपर उचित आकारके तकुए लगा दिये जायें तो तुरन्त दुगुना सूत मिलने लगे।

रही कपासकी बात, बंगालके सभी भाग इसके लिए उपयुक्त नहीं हैं। इसलिए किसी हदतक आयातकी जरूरत सदैव रहेगी। प्रत्येक नवीन उद्योगको संरक्षणकी जरूरत होती है। राज्यका संरक्षण हमें शायद अभी नहीं मिल सकता। इसलिए इसका उपाय केवल स्वेच्छया संरक्षण ही हो सकता है। और स्वेच्छया संरक्षणका एक तरीका पारिश्रमिकके रूपमें कुछ लिये बिना सूत कातना है। कांग्रेसको कताई सदस्यताका एक यह भी ध्येय है। दूसरा तरीका रुई माँगना तथा गुजरातकी तरह पूनियाँ अथवा रुई आधी कीमतमें बेचना तथा उन लोगोंके सूतको आधी कीमतमें बुनवाना भी है जो अपनी आवश्यकताओं के लिए काफी सूत कात सकते हैं। मिलोंके साथ तुलना एक बेकारका कालाक्षेप है । कल्पना यह भी की जा सकती है कि जापान और मैन्चेस्टर हमारे पुनर्जीवित हो रहे घरेलू कताईके कुटीर उद्योगको नष्ट करने के लिए अपना कपड़ा प्रायः मुफ्त दे दें। फिर भी ऐसे आदमी होंगे जो विदेशी अथवा मिलका कपड़ा मुफ्त लेना भी स्वीकार न करेंगे। ऐसे ही लोगोंके जरिये हम चरखके प्रसारकी तथा उसे सफल बनानेकी आशा कर सकते हैं।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, २१-५-१९२५


३९. भेंट : हरदयाल नागसे
चाँदपुर
 
[१२ मई, १९२५ से पूर्व ]
 

गांधीजीसे बाबू हरदयाल नागने भेंट की और उन्होंने उनसे जो प्रश्न पूछे वे गांधीजी द्वारा दिये गये उत्तरोंके साथ इस प्रकार हैं:

प्रश्न : क्या आपका अब भी यही विश्वास है कि स्वराज्य बाहरसे नहीं आ सकता?

उत्तर : हाँ, यह मेरा पक्का विश्वास है।

तो फिर आपने दासके स्वराज्य-सम्बन्धी इस नये मतका खण्डन क्यों नहीं किया कि वह उपहारके रूपमें प्राप्त होगा और अनिवार्यतः साम्राज्यके अन्तर्गत ही रहेगा?

मैं नहीं समझता कि श्री दासने फरीदपुरके अपने अध्यक्षीय भाषणमें ऐसी कोई बात कही है। आपने उस भाषणका जो अर्थ समझा है, उससे बिलकुल ही भिन्न मैने