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भैंट : हरदयाल नागसे

समझा, क्योंकि देशबन्धु दास यह नहीं कहते कि स्वराज्यका ब्रिटिश साम्राज्यके अन्तर्गत रहना अनिवार्य है। इसके विपरीत, वे इस सूत्रपर दृढ़ हैं कि 'स्वराज्य हो सके तो साम्राज्यके अन्तर्गत और यदि जरूरी हुआ तो उसके बाहर भी।'

क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि कुछ लोग केवल प्रशासनका बाहरी रूप- रंग बदलने की कोशिशमें हैं, वे उसका वास्तविक स्वरूप बदलनेकी कोशिश नहीं कर रहे हैं।

मैं जानता हूँ कि कुछ लोग केवल उसका रूप-रंग ही बदलना चाहते हैं, वास्तविक स्वरूप नहीं।

मेरा कुछ ऐसा सवाल है कि स्वराज्यवादी लोग ऊँचे पद हथियानेवाले वर्गोंमें एक और वर्ग जोड़ देनकी कोशिश कर रहे हैं। इस नये वर्गको थोड़ी-बहुत सत्ता हस्तान्तरित कर दी जायेगी, जो वास्तवमें सत्ता होगी ही नहीं।

मुझे ऐसी आशंका नहीं है और न मेरा ऐसा विश्वास ही है। जहाँतक मैं देशबन्धु दास और पण्डित मोतीलाल नेहरूको जानता हूँ, मुझे पूरा यकीन है कि वे प्रशासनके ऊपरी रंग-रूप बदल दिये जाने से सन्तुष्ट होनेवाले व्यक्ति नहीं है।

उदाहरणके तौरपर मैं कलकत्ता निगमका दृष्टान्त सामने रखता हूँ। यथासम्भव उसके प्रत्येक विभागमें स्वराज्यवादी ही भरे हुए हैं। मेरा खयाल है कि स्वराज्य- वादी लोग प्रान्तीय और स्थानीय प्रशासनको महज इसलिए अपने दलके अधीन कर लेना चाहते हैं कि उसके सब पदोंपर वे स्वराज्यवादियोंको नियुक्त कर सकें।

मैं नहीं जानता कि कलकत्ता निगममें क्या हो रहा है।

मेरा तथा अन्य बहुतेरे लोगोंका खयाल है कि स्वराज्यका विकास देशके भीतरसे हो [और धीरे-धीरे ] होना चाहिए और उसके निर्माणका आधार गाँव होने चाहिए एवं उसको आधारशिला एकमात्र चरखा ही हो सकता है। क्या आप मेरे इस विचारसे सहमत हैं?

मैं आपके विचारका अक्षरशः अनुमोदन करता हूँ। लेकिन हमें लगता है कि स्वराज्यवादियोंकी असहानुभूतिके कारण हमारा काम बहुत कठिन हो गया है। बंगाल- में प्रायः सभी कांग्रेसी संस्थाएँ उनके हाथमें हैं और वे चरखेको उपयोगिताको मानते ही नहीं है। ऐसी परिस्थितिमें प्रान्तीय या जिला संगठनोंके अभावके फलस्वरूप चरखेको बड़ा नुकसान पहुंच रहा है।

क्या आप चरखा और खादी-आन्दोलनके हितकी दृष्टिसे कोई अलग संगठन खड़ा करने के विचारको पसन्द करेंगे?

मुझे यदि पता चले कि स्वराज्यवादी लोग चरखेमें विश्वास नहीं रखते तो मुझे बहुत दुःख होगा। मैं यह तो जानता हूँ कि उनमें से कुछ लोगोंका चरखेपर उतना विश्वास नहीं है जितना आपको और मुझे है, लेकिन जहाँतक मुझे मालूम है, मुझे एक भी स्वराज्यवादी ऐसा नहीं मिला जिसने चरखेके प्रति अपनी अश्रद्धा व्यक्त की हो। मान लीजिये कि वे चरखेमें कतई विश्वास नहीं करते तो भी मैं आपके द्वारा निकाले

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