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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

गये इस निष्कर्षको नहीं समझ पा रहा हूँ कि उनकी सहानुभूति आपकी अथवा मेरी प्रगतिमें बाधा कैसे डाल रही है। इसके विपरीत आपको और मुझको उनकी उदासीन मनोवृत्तिके कारण और अधिक प्रयत्न करना चाहिए। इसलिए मैं चरखके विकासके लिए अलगसे संगठन बनाना तबतक जरूरी बहीं समझता, जबतक स्वराज्यवादी लोग चरखेका विरोध नहीं करने लगते।

क्या आप इस तथ्यको स्वीकार करते हैं कि अपने-अपने कामको हदतक कांग्रेस- दल और स्वराज्यवादी दल एक-दूसरेसे मिलकर नहीं चल रहे हैं ?

मैं इसे सही नहीं मानता। लेकिन अगर दोनों परस्पर सद्भावनासे न चल रहे हों तो स्वराज्यवादियोंकी अपेक्षा मैं इसमें अपरिवर्तनवादियोंका दोष अधिक मानूंगा। केवल इसलिए कि गैर-स्वराज्यवादियोंको स्वराज्यवादियोंके रास्तेमें रोड़े अटकानेका कोई भी कारण नहीं है। मेरा खयाल है कि कमसे-कम उन्होंने तो अपना मार्ग 'अन्तिम रूपसे चुन लिया है। अब उन्हें चाहिए कि अपने फैसलेपर अडिग रहें और उसीके अनुसार कार्य करें।

लेकिन आप तो दोनों दलोंके विधिवत् मान्य नेता हैं। इस बातको ध्यानमें रखते हुए क्या आपका कर्तव्य इतनेसे ही पूरा हो जाता है कि आप किसी एक दलको दोषी ठहरा दें?

हाँ; अवश्य, क्योंकि भले ही मै नामके लिए दोनों दलोंका प्रधान होऊँ, पर मैं स्वयं गैर-स्वराज्यवादी दलका व्यक्ति हूँ। इसलिए गैर-स्वराज्यवादियोंको अधिक दोषी ठहराने का मुझे हक है।

निश्चय ही हममें से बहुतोंको व्यक्तिगत रूपसे स्वराज्य हासिल करनेके साधन रूपमें अहिंसात्मक असहयोगपर पूर्ण विश्वास है। अब यह स्पष्ट हो गया है कि स्वराज्यवादी लोग केवल अपने वर्ग अथवा दलके हित साधनके विचारसे असहयोगको निन्दा कर रहे हैं और वे सहयोगका अपना मंशा भी सूचित कर चुके हैं- हाँ, यह जरूर है कि उन्होंने सहयोगके लिए कुछ शर्ते लगाई है। परन्तु वे शतें ऐसी हैं जो देशके खयालसे महत्त्वपूर्ण नहीं हैं। इन हालतोंमें श्री दासने फरीदपुरमें अपना अध्यक्षीय भाषण देते हुए असहयोगको असफल बताया है, आपने अहिंसा और सत्यके पालनपर जोर तो दिया लेकिन देशबन्धु दासके प्रहारसे असहयोगकी रक्षा करनेके लिए एक भी शब्द नहीं कहा। क्या आप इस सम्बन्ध में कुछ प्रकाश डालेंगे?

श्री दासके भाषणमें मुझे असहयोगपर कोई प्रहार दिखाई नहीं दिया। इसलिए असहयोगपर कुछ कहना प्रस्तुत विषय नहीं था। इसके अलावा चूंकि असहयोगके स्थगन- का प्रस्ताव बेलगाँवमें मैंने ही रखा था, मैने असहयोगके बारेमें कांग्रेसके मंचसे एक भी शब्द जान-बूझकर नहीं कहा है। लेकिन मेरी निजी राय सारे संसारको मालूम है और सहयोगसे मेरा अलग रहना मेरे विचारोंका स्पष्ट परिचायक है।

यह ठीक है कि फरीदपुरमें आपने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके अध्यक्षकी हैसियतसे भाषण नहीं दिया था, अपने व्यक्तिगत रूपमें दिया था और आपने वहाँ