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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

क्या आप प्रान्तीय स्वायत्त-शासनसे देशबन्धु दासका जो अभिप्राय है, उसे समझते हैं?

मैं अनुमान लगा सकता हूँ।

आपका अनुमान क्या है ?

मैं उसका वही अर्थ मानता हूँ जो कोषमें दिया हुआ है।

क्या इस मुद्देपर मैं आपसे एक स्पष्ट उत्तरको आशा नहीं कर सकता?

यही इसका उत्तर है; क्योंकि मैंने फरीदपुरमें दिये गये देशबन्धुके भाषणका बहुत ही बारीकीसे अध्ययन किया है। वहाँ उन्होंने इस विषयकी विस्तारसे चर्चा नहीं की थी। इसलिए मुझे प्रान्तीय स्वायत्त शासनका वही सामान्य अर्थ लगानेका अधिकार है जो अंग्रेजी भाषामें माना जाता है।

क्या फरीदपुरके भाषणका यह अर्थ नहीं लगाया जा सकता कि देशबन्धु दासने प्रान्तीय स्वायत्त-शासनके सम्बन्धमें अपने विचार बदल दिये हैं ?

मैं ऐसा नहीं समझता। निश्चय ही मुझे ऐसा नहीं लगा।

तो फिर वे अपने अध्यक्षीय भाषण में उन शब्दोंके इस्तेमालसे कतराये क्यों?

क्या इस विषयपर अर्थात् प्रान्तीय स्वायत्त-शासनपर उन्होंने जोर दिया था? इसका वहाँ कोई अवसर ही नहीं था। उन्होंने तो स्वराज्यपर ही जोर दिया था; और स्वराज्य एक ऐसा शब्द है जो मेरी दृष्टिमें अधिक व्यापक है, क्योंकि उसमें प्रान्तीय स्वायत्त-शासनके अतिरिक्त और भी बातें आ जाती है।

लेकिन क्या आप हमें इसका कारण बतला सकते हैं कि जिस शब्दका प्रचार वे लगातार करते आये हैं उस शब्दको जबानपर न लानेके बारेमें उन्होंने इतनी सतर्कता क्यों बरती?

महज इसलिए कि वे उससे भी अधिक प्रचलित और व्यापक शब्दका प्रयोग कर रहे थे।

क्या आप अन्दाज लगा सकते हैं कि स्वराज्यवादियोंके कौंसिलोंमें किये जाने- वाले कार्यका अन्तिम फल क्या होगा?

मुझे अन्दाज लगानेकी जरूरत नहीं है, क्योंकि जब कभी मैं यह जानना चाहूँगा कि उन्होंने क्या किया है तब मैं अपने पास रखी हुई समाचारपत्रोंकी फाइलें देख लूंगा। और फिर, ऐसे सारे कार्योंका मूल्य आँकने के लिए मेरे पास अपना एक अलग मापदण्ड है। और मैं जानता हूँ कि उनके द्वारा कौंसिलोंमें किया गया कार्य उस कामसे किसी भी तरह कमोबेश न होगा जो हम और आप कौंसिलोंके बाहर रहकर गाँवोंमें कर रहे हैं। चूंकि जो लोग कौंसिलोंमें गये हैं उन्होंने घोषणा की है, वह की भी जानी चाहिए थी कि उनका बल जनताके खुदके किये कामपर और उसके द्वारा स्वशासनके लिए पैदा की गई शक्तिपर निर्भर करता है। मेरा सुझाव है कि आप और अन्य सभी लोग इस मापदण्डको स्वीकार कर लें। उस हालतमें हमें समाचारपत्रोंकी फाइलें नहीं उलटनी पड़ेंगी और न अटकलबाजीके निरर्थक खेलमें समय बरबाद करना पड़ेगा।