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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

शुद्धताको क्या लेना-देना है? यदि मेरे चारों ओर संसार अशुद्धिमय है तो क्या मुझे भी अशुद्ध हो जाना चाहिए। क्या ठीक वही समय हमारे लिए अपनी शुद्धताकी शक्ति-परीक्षाका नहीं है? मैं तो केवल इतना ही और कहना चाहूँगा कि विशुद्धि- वादियोंने अपने दावेके फलितार्थों को ठीकसे नहीं समझा है। यदि उन्हें अपने दावे सही सिद्ध करने हैं तो उन्हें शिकवा-शिकायत नहीं करनी चाहिए। उन्हें संसारके किसी भी व्यक्तिमें दोष नहीं खोजना चाहिए, फिर उनके साथ तो बिलकुल ही नहीं जिनके साथ वे अभीतक सहयोगीके रूपमें काम करते आये हैं। बल्कि उन्हें सामने आनेवाली बाधाओंका मुकाबिला शान्तिके साथ और दृढ़तापूर्वक करना चाहिए और परीक्षाको घड़ीमें अधिकसे-अधिक तेजस्वी बनना चाहिए।

स्वराज्यवादियोंका वर्तमान रुख क्या खुली दुश्मनोके रुखसे भी ज्यादा बुरा नहीं है?

यदि चरखके प्रति स्वराज्यवादियोंके दिलोंमें सचमुच ही श्रद्धा नहीं है तो मैं यह ठीक मानता हूँ कि भीतर ही भीतर उसका विरोध करनेकी अपेक्षा खुले तौरपर विरोध करना कहीं बेहतर होगा।

यदि स्वराज्यवादी वास्तवमें चरखके प्रति उपेक्षाभाव रखते हैं तो क्या चरखे और खद्दरके लिए एक पृथक् संगठनका होना उचित नहीं होगा?

हाँ, अवश्य ।

यदि ऐसा है तो फिर क्या एक नये ही अखिल भारतीय असहयोग संगठनको बात सोचने का समय नहीं आ गया है ?

मैं समझता हूँ कि अभी वह समय नहीं आया है। इस. कामके बारेमें कोई निश्चित मत प्रकट करने या कोई निश्चित कदम उठानेसे पहले हमें यह पूरा वर्ष तो साथ-साथ काम करके देख ही लेना चाहिए।

बहुतेरे कट्टर असहयोगी स्वराज्यवादियोंके साथ काम करने में परेशानी महसूस करते हैं। क्या आप इसका कोई दूसरा हल सुझा सकते हैं?

किसी भी निष्ठावान् असहयोगीको स्वराज्यवादियोंके साथ काम करने में परेशानी महसूस नहीं करनी चाहिए, क्योंकि यदि उसे उनके साथ कौंसिलमें काम नहीं करना है तो स्वराज्यवादीके साथ काम करनेका इसके सिवाय और क्या अर्थ है कि चरखेका काम साथ मिलकर किया जाये। मेरा खयाल है कि एक खरा असहयोगी वाइसराय तक के साथ काम करनेको तत्पर रहेगा बशर्ते कि वाइसराय महोदय बराय मेहरबानी चरखा चलाने बैठ जायें।

लेकिन महात्माजी, आप तथ्योंको अनदेखा नहीं कर सकते; वे अनुकूल नहीं हैं।

तो फिर मैं कहूँगा कि वे असहयोगी ही नहीं हैं, क्योंकि वे असहयोगके मर्मसे अपरिचित हैं। असहयोग किसी व्यक्तिको कृतियोंसे किया जाता है, खुद व्यक्तिसे नहीं।

हम आपके विचारोंको समझते तो हैं परन्तु सचाई यह है कि हम (उनके साथ काम करने में) परेशानी महसूस करते हैं। वे हमारे काममें अड़चनें पैदा कर रहे हैऺ।