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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

विषयमें दो मत हैं। फिर भी मैं इस मामलेपर सावधानीके साथं विचार करूंगा। मैं नगरपालिकाको धन्यवाद देता हूँ कि उसने मद्यपानपर प्रतिबन्ध लगाया और अपने कर्मचारियोंको खद्दर पहनने के लिए कहा है। केवल खद्दर ही हमारे सब काम बना सकता है। खद्दरके बिना सविनय अवज्ञा असम्भव है। देशको गरीबी दूर करनेके लिए चरखा चलाना आवश्यक है। यह आन्दोलन आत्मशुद्धिके लिए है। मैं ऐसी कोई बात नहीं कहूँगा जिसे मैं स्वयं नहीं करता।

कुछ शब्द अंग्रेजीमें कहने के लिए मुझसे अभी-अभी कहा गया। मैं जानता हूँ कि बंगालियोंको अंग्रेजीसे कितना मोह है। मैंने जो-कुछ कहा है उसके प्रत्येक शब्दका पर्याप्त रूपसे शुद्ध अनुवाद आपने अपनी मातृभाषा बंगलामें सुना है। मैं तो सोच भी नहीं सकता कि मैं एक ऐसी भाषाके माध्यमसे, जो आपके लिए भी उतनी ही विदेशी है जितनी कि मेरे लिए, आपको इससे अधिक आग्रहपूर्वक और स्पष्ट शब्दोंमें सत्यकी प्रतीति करा सकूँगा। किन्तु मुझे तो अपना काम करना है और यदि मैं अंग्रेजी भाषाके माध्यमसे ही कुछ लोगोंको खादी-भक्त बना सकूँ या कुछको, यदि वे पहलेसे ही अहिंसाकी शक्ति और मर्मके कायल नहीं हों और मैं उन्हें उसका कायल कर सकूँ तो मुझे जरूर ऐसा करना चाहिए। और इसलिए यदि मैं अब अंग्रेजीमें भाषण करके आपका समय लेता हूँ तो वह केवल उन लोगोंके सन्तोषके लिए जो चाहते हैं कि मैं अंग्रेजीमें बोलूं। ऐसा करने में मेरा हेतु यह है कि यदि वे इस नितान्त सरल सत्यको जिसे मैं भारतकी जनताके सामने रखता आ रहा हूँ, किन्तु जिसे वह अबतक नहीं समझ सके हैं, उनको समझा सकूँ ।

मेरे एक साथी कार्यकर्त्ताने कुछ वर्ष पूर्व चरखेके बारे में लिखते हुए कहा था कि इसकी सादगीके कारण ही शिक्षित वर्ग इससे भयभीत है। उन्होंने यह बात कही थी और उनकी इस बातमें बहुत-कुछ सचाई है कि चरखेकी सादगीके कारण ही शिक्षित भारतीय उसके सौन्दर्य तथा उसके उदात्त अभिप्रायको समझने में असमर्थ हैं। चरखा यद्यपि एक इतनी सरल-सी चीज है, पर वर्षांतक निरन्तर और गहराईसे विचार करनेके बाद मुझे इस बातका पूरा भरोसा हो गया है कि भारतके सामने अपने बहुतसे कष्टोंका निवारण करनेके लिए चरखा और खद्दरसे अधिक अचूक अन्य कोई उपाय नहीं।

हमारे प्यारे देशकी समस्याएँ इतनी विशाल और इतनी जटिल हैं कि वे एक अत्यन्त ही सरल उपचारके सिवा और किसी प्रकारसे हल नहीं होंगी। हमारी शिक्षा बड़ी ही पेचीदा और बेमेल किस्मकी रही है। इसके साथ हमें जो प्रशिक्षण मिला है उसने हमारे विचारोंको उलझाकर रख दिया है, हमारे मस्तिष्कको जड़ बना दिया है और जबतक हमारे सामने कोई भी चीज बड़ी गूढ़ बनाकर, जटिल रूपमें पेश नहीं की जाती तबतक उसमें निहित सत्यको हम देखने के लिए तैयार नहीं होते।

१. यह अनुच्छेद १३-५-१९२५ के हिन्दूसे लिया गया है। बादका अंश १५-५-१९२५ के अमृत- बाजार पत्रिकामें दिये गये विवरणसे अनूदित है।