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भाषण : चटगाँवकी सार्वजनिक सभामें

किन्तु यदि आप और गहराईसे सोचें, इससे भी अच्छा यह होगा कि आप अपने कमरेमें जायें और ईश्वरके सामने घुटने टेककर यह प्रार्थना करें कि वह आपका मार्गदर्शन करे तो वह आपको ठीक मार्गपर ले जायेगा और निश्चय ही आपको चरखेके पास बिठा देगा। हम बातें बहुत कर चुके हैं, हम भाषण दे चुके हैं, हम समाचारपत्रोंमें लिख चुके हैं, हम किताबें प्रकाशित कर चुके हैं, यहाँतक कि हम अनुसन्धान भी काफी कर चुके हैं; किन्तु बोलने का युग, लिखनेका युग, भाषण देनेका युग लद गया है और वह अब लौटनेवाला नहीं है। कर्मका युग आ गया है। आपको भाषण देनेवाली कौमके विरुद्ध संघर्ष नहीं करना है, बल्कि जन्मजात कार्यकर्ताओंकी एक जातिके विरुद्ध संघर्ष करना है — ऐसी जाति जो झुकना नहीं जानती, ऐसी जाति जिसके पास दृढ़ निश्चय है और ऐसी जाति जो संसारके कुछ श्रेष्ठतम सैनिकोंसे बनी है। जो काम हम सबके सामने पड़ा है उसे किसी भी प्रकार- की कूटनीतिका सहारा लेकर नहीं किया जा सकता। जन-जागरण चाहते हैं, आप जनताका सहयोग चाहते हैं। आप चाहते है कि पार्षदगण अधिकारके साथ बोलें। इस समय उनके शब्दोंमें कोई शक्ति नहीं है। उनके प्रस्तावोंमें कोई बल नहीं है। इसका कारण यह नहीं है कि उनको बोलना नहीं आता। देशबन्धुने दिखा दिया है कि सरकारके प्रस्तावको और उसकी नीतिको गिराकर वे अपने बुद्धि-कौशलसे उसे किस प्रकार पराजित कर सकते हैं। किन्तु जबतक उनके पीछे जनताकी शक्ति न हो तबतक वे कुछ नहीं कर सकेंगे। आप और मैं, हममें से सभी तो कौंसिलोंमें नहीं जा सकते। मैंने बार-बार कहा है कि मैं कौंसिलोंमें विश्वास नहीं करता। लेकिन जो उनमें विश्वास रखते हैं, उनको मेरी ओरसे वहाँ जानेकी अनुमति है। मैं चाहता हूँ कि वे अधिकारयुक्त हों और सरकार उनकी बात आदर और ध्यानके साथ सुने और वे वहाँ जानेके पश्चात् अपनी हँसी न उड़वाएँ। ऐसा कैसे हो? ऐसा बड़ी-बड़ी सभाएँ करके नहीं होगा, प्रस्ताव पास करके नहीं होगा, प्रस्तावोंकी नीतिका समर्थन करके नहीं होगा, बल्कि ऐसा तभी होगा जबकि उन्हें कुछ शक्ति प्रदान की जाये। आप तबतक उन्हें शक्ति प्रदान नहीं कर सकते, जबतक कि आप स्वयं अपनेमें उस शक्तिका विकास नहीं कर लेते। हममें शक्ति नहीं है। जो व्यक्ति सरकारको हिंसाका मुकाबला हिंसासे करनेका दम भरता हो, वह सामने आये। मैं कहता हूँ कि वह सरासर भूलपर है। दुनियाके दूसरे हिस्सोंमें चाहे कुछ भी हुआ हो, लेकिन मेरा दृढ़ विश्वास है कि हम हिंसाके जरिये स्वराज्य प्राप्त नहीं कर सकते।

इसलिए मैंने अच्छी तरह सोच-समझकर ही अहिंसाका कार्यक्रम रखा है। मैंने ऐसा इस खयालसे नहीं किया कि यह एक धार्मिक कृत्य है, जैसा कि मैं उसे मानता हूँ, बल्कि इस खयालसे कि यह कार्य-साधक उपाय है। देशके लिए एकमात्र राज- नीति यही है। जिसके पास जरा भी राजनीतिक समझदारी होगी वह इस नतीजेपर पहुँचे बिना न रहेगा कि हिंसाके साधनोंसे कोई काम सधनेवाला नहीं है। मैं उन लोगोंकी अधीरताको समझता हूँ, उनकी प्रशंसा भी करता हूँ जिनके हृदयोंमें देशको गुलामीकी बेड़ियोंसे मुक्त करनेको तीन लालसा है किन्तु देशकी गुलामीकी बेड़ियोंको