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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

काटने के लिए मेरी आतुरता किसीसे भी कम नहीं है। किन्तु मैं अपनेको एक विवेक- शील व्यक्ति मानता हूँ। मैं समझता हूँ कि मुझमें व्यावहारिक ज्ञान प्रचुर मात्रामें है। मैं अपने को एक ऐसा व्यक्ति मानता हूँ कि जिसने संसारको बहुत-कुछ देखा है। मैं अपनी किशोरावस्थासे ही संघर्ष करता आया हूँ — जन्मजात योद्धा हूँ। मैं लड़नसे नहीं चूकता फिर चाहे मेरा वास्ता अपने भाई, मित्र, पत्नी, बच्चों या अपने सह- धर्मानुयायीसे ही क्यों न पड़ा हो; यदि किसी मुसलमानसे पड़ा तो उससे भी। किन्तु इस सम्पूर्ण अवधिमें मैंने यही देखा है कि इन तमाम लड़ाइयोंमें मेरा अस्त्र एक ही रहा है, अहिंसा।

मैं अपनी पत्नीसे हिंसात्मक रीतिसे नहीं लड़ा, मैं अपने भाइयोंसे हिंसात्मक रोतिसे नहीं लड़ा, मैं मुसलमानोंसे हिंसात्मक ढंगसे लड़नेको तैयार नहीं हूँ और मैं उन हिन्दुओंसे भी हिंसात्मक रीतिसे लड़ने का साहस नहीं करता जिनमें से कुछ अस्पृश्यताके प्रश्नपर मेरा विरोध कर रहे हैं। इसलिए मैं अनुभवको इस निविसे यह निष्कर्ष निकाल सकता हूँ कि हिंसाको अपनाकर मैं अंग्रेजोंसे भी नहीं लडूंगा। आपने मेरे किसी लेखमें पढ़ा होगा कि मेरे प्रयत्नोंके फलस्वरूप जितने अंग्रेज भारतके प्रति प्रेमभाव रखने लगे हैं उतने आजकी पीढ़ीके किसी भी अकेले व्यक्तिके प्रयत्नसे नहीं रख सके। मैं जानता हूँ कि यह एक बहुत बड़ा दावा है, यह गर्वोक्ति है, किन्तु यह एक विनयशील व्यक्तिका दावा है, और उसने यह दावा अत्यन्त विनम्र- भावसे किया है। मैं अनुभव करता हूँ कि यदि हमें अहिंसाके जरिये लड़ाई लड़नी है तो यह केवल शब्दोंके जरिये नहीं लड़ी जा सकती। अहिंसाको कार्यरूपमें परिणत करना होगा। भारतकी मुक्तिका एक ही उपाय है और वह है अनवरत कार्य । बिना आरामके, बिना विश्रामके, बिना सुस्ताय, बिना एक क्षणके लिए भी रुके, ठहरे, और इस बातमें दृढ़ विश्वास रखते हुए कि यह एक बहुत अचूक उपाय है। और यही एक उपाय है जिसे मैं उन छोटी-छोटी बालिकाओं, बालकों, वयस्क लोगों, कवियों और दार्शनिकों, संन्यासियों, राजनीतिज्ञों, विद्वान् प्राध्यापकों, भंगियों, महिलाओं, तथा स्वस्थ पुरुषोंके हाथोंमें सौंप सकता हूँ। जो अति व्यापक एकमात्र उपचार आज मेरी समझमें आ रहा है, वह चरखा ही है। आप इस चरखेकी शक्तिको बढ़ाते जाइए और तबतक कातते जाइए जबतक ३० करोड़ व्यक्ति चरखा चलाने नहीं लग जाते। तब आप मुझे बतायें कि इसकी शक्ति कितनी होगी, और यह बतायें कि यह क्या नहीं कर सकेगा। क्या कोई ऐसी चीज नहीं है जिसके बारेमें हम यह दावा कर सकें कि यह हमारे लिए प्रतिष्ठाजनक है या हमारे सामर्थ्यके अन्दरकी चीज है। राजनीतिक जीवनके ४० वर्षों के इस लम्बे और नीरस अर्से में हम दुनियाको एक भी काम पूर्णताके साथ सम्पन्न करके नहीं दिखा सके हैं। हमने अभीतक अपने सामने बहुतसे कार्यक्रम रखे। अब मैं राष्ट्रके सामने केवल एक ही कार्यक्रम रखता हूँ और उससे कहता हूँ कि वह पहले इस कार्यक्रमको पूरा कर दिखाये और इसके बाद ही अन्य किसी कार्यक्रमकी बात सोचे। मेरा कार्यक्रम यह है। चाहे खद्दर महँगा हो, चाहे खुरदरा और मोटा हो किन्तु हमें खद्दरके सिवा और कुछ नहीं पहनना