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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दिन-भरमें एक गज भी नहीं बन पा रहे हैं और इस तरह दो आना रोज भी कमानमें असमर्थ हैं।

यह एक वाजिब शिकायत है। इन पृष्ठोंमें मैंने कहा है कि जो सूत आसानीसे बुना न जा सके, वह सूत कदापि नहीं है — जिस तरह जो रोटी खाई न जा सके, वह रोटी नहीं है। यह शिकायत सूत कातनवाले सदस्योंकी जबरदस्त असावधानी- का प्रमाण प्रस्तुत करती है। कभी-कभी खराब ढंगसे किया गया काम कुछ काम न करनेसे भी ज्यादा बुरा होता है। जो वकील अपने मुकदमेकी पैरवी कुशलतासे नहीं करता, वह अपने मुवक्किलका पैसा चुरानेवाला चोर है। जो डाक्टर अपने मरीजका इलाज लापरवाहीसे करता है, वह भी मरीजका पैसा ही चुराता है और मानव-हत्यातक का दोषी कहा जा सकता है। इसी तरह जो सूत कातनेवाला व्यक्ति कातने में लापरवाही बरतता है और उसकी मजबूतीकी जाँच किये बिना ही अपना सूत भेज देता है वह व्यक्ति अप्रामाणिक रूपसे सूत कातनेका श्रेय प्राप्त करनेका दोषी है।

स्वराज्यमें सरकारकी बागडोर हमारे ही हाथोंमें होगी। तब यदि अधिकारी- गण अपना. काम इसी तरह लापरवाहीसे किया करेंगे, जैसा कदाचित् सूत कातनेवालोंने इस बार किया है तो फिर काम कैसे चलेगा? सूत कातना एक सरल कार्य है, लेकिन वह हमारी योग्यताकी कसौटी भी है। इस अर्थमें कोई अन्य कार्य भी निश्चय ही हमारे लिए कसौटीके रूपमें होंगे। लेकिन सूत कातनेका कार्य इसलिए चुना गया है कि देशमें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। सार्वजनीन कसौटी एक ही हो सकती है। सार्वजनीन होने के लिए काम सादे ढंगका हो, सीखने में आसान हो और जरूरी है कि उसमें हर व्यक्तिको कमसे-कम समय लगे, ताकि उस काममें लगे हुए लोग अन्य सार्वजनिक अथवा निजी कार्योंमें अपना समय और ध्यान दे सकें। सूत कातना ही ऐसी सार्वजनीन कसौटी है और यदि इस कार्यको अपनानेवाले लोग भी अपना काम लापरवाहीसे, बेमनसे या भद्दे ढंगसे करेंगे तो वे एक ऐसी कसौटीपर खरे उतरे हुए नहीं माने जाएँगे जो व्यावहारिक और इतनी सरल है कि जिससे अधिक सरल किसी कसौटीकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। हो सकता है कि लोग सूत कातना पसन्द न करते हों या उसमें विश्वास न रखते हों, तब तो सबसे सीवा रास्ता यही होगा कि वे कातें ही नहीं। लेकिन बेमनसे कातना अपने-आपको और राष्ट्रको धोखा देना है।

हाथकरघा

वाणिज्य एवं उद्योग विभागके अधीन हाथकरघेकी बुनाईपर सूचना विभागके निदेशकने एक स्मरणपत्र जारी किया है। उस स्मरणपत्रका मुख्य अंश मैं नीचे प्रकाशित कर रहा हूँ:

१. यहाँ उद्धृत नहीं किया गया है। स्मरणपत्र में पिछले पन्द्रह वर्षों में हाथ करघेकी बुनाई में की गई प्रगतिका ब्योरा दिया गया था। विभागने कृषिप्रधान क्षेत्रोंमें कुछ स्कूल खोले थे ताकि लोगोंको बुनाई और रंगाई में प्रशिक्षण दिया जा सके।