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टिप्पणियाँ

यह बात पहलेसे ही निश्चित है कि खेतिहरोंके घरोंमें हाथकरघाका प्रचलन शुरू करानके प्रयत्न असफल होंगे, क्या इस तथ्यकी ओर मैं विभागका ध्यान खींच सकता हूँ? कृषि जीवनका थोड़ा-सा ही ज्ञान हो जानेपर यह जाहिर हो जाएगा कि हाथकरघोंको इस तरहसे दाखिल करना अव्यावहारिक है। हाथसे बुनाई करना एक लम्बी प्रक्रिया है, जिसके लिए लगातार श्रम करना जरूरी है। उसके अन्तर्गत अनेक प्रक्रियाएँ हैं जिनमें एकाधिक लोगोंके एक ही साथ काम करने की जरूरत है। यह सब किसी कृषककी झोपड़ी में हो सकना असम्भव है। इसलिए पुरातन कालसे हाथकी बुनाई एक अलग पेशा और आजीविकाका एक स्वतन्त्र एवम् पूर्ण साधन रही है। कृषक कोई ऐसा पूरक धन्धा चाहता है, जिसे वह जब चाहे करे और जब चाहे न करे। करोड़ों लोगोंके लिए ऐसा काम हाथसे सूत कातना ही है। निस्सन्देह ऐसे और भी काम है जिनसे खाली समयका उपयोग किया जा सकता है। लेकिन करोड़ों आदमियों और औरतोंके लिए हाथसे सूत कातना ही एक समान काम हो सकता है। इसलिए यदि उद्योग विभाग अपने अस्तित्वका औचित्य सिद्ध करना चाहता है और व्यक्तियोंके सोचने के बजाय करोड़ों लोगोंके बारे में सोचना चाहता है और इंग्लैंडके बजाय भारतकी बात सोचना चाहता है तो वह अपना ध्यान मुख्य रूपसे हाथकताईकी ओर लगायेगा, ग्रामीणोंमें कताईका संगठन करेगा और हाथसे कताईके विभिन्न तरीकोंमें सुधार करेगा। मुझे यह देखकर हर्ष होता है कि बंगालमें इसी प्रकारके विभागने हाथकताईकी ओर ध्यान देना शुरू किया है, हालाँकि अभी वह ढीलेढाले ढंगसे ही हो रहा है। सरकार यदि जरा भी सदाशयतासे काम ले तो हाथकताई ही एक ऐसा काम है जिसमें वह जनतासे सहयोग कर सकती है और उसे सफल बना संकती है। हमें बहुधा सरकारसे सहयोग करनेके लिए कहा जाता है, लेकिन स्वाभाविक और उचित तो यही है कि सरकार जनतासे सहयोग करे, उनकी जरूरतोंको पहलेसे ही समझे और उन्हें पूरी करनेका प्रबन्ध करे। मैं विभागका ध्यान इस तरफ भी दिलाना उचित समझता हूँ कि जबतक वह बुनाईके पूर्वको सब प्रक्रियाओंपर नियन्त्रण नहीं रखेगा, हमारी रुई कच्चे मालके रूपमें मैचेस्टर, जापान या बम्बई ही जाती रहेगी। विभागका काम यह है कि प्रत्येक ग्रामीणको इस बातका प्रशिक्षण दे कि वह अपने खेतोंमें पैदा होनेवाली सारी कपासको अपने ही घर या गाँवमें ओटे, धुने, काते और बुने ताकि उसके पास कई तरहके काम करनेके लिए हों और जब अकाल या बाढ़-जैसी विपत्ति आए और जब उसके खेतोंमें फसल न खड़ी हो और उसके पास कोई काम न हो तो वह अपनेको बेकार और असहाय महसूस न करे।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, १४-५-१९२५




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