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४६. पत्र : सी० एफ० एन्ड्रयूजको
नवाखली
 
१४ मई, १९२५
 

मेरे प्यारे चार्ली,

तुम्हारा पत्र मिला। निश्चय ही हम लोग शान्तिनिकेतन जा रहे हैं, बर्दवान- में भेंट होगी।

तुमने श्री मैकमिलनके विषयमें जो लिखा है, उसपर मैंने गौर किया। अगर कोई व्यक्ति मृत्युके बाद मिलनेवाले दण्डके भयसे असत्यसे बचता है तो उससे क्या लाभ? फिर भी, यदि लोग जनमतके दबावके कारण ही नैतिक बंधनोंका पालन करते हों तो क्या उनके बने रहने की अपेक्षा उनके विनाशको हम अधिक पसन्द करेंगे? यदि कोई सज्जन सन्तति-नियमनकी हिमायत करते हैं, तो वे स्पष्टतः स्वीकार करते हैं कि उनका नैतिक बन्धनोंमें विश्वास नहीं है और वे वैवाहिक जीवनमें सम्भोगकी स्वच्छंदताको ही आदर्श स्थिति मानते हैं। इसपर मुझे हैरानी होती है।

सस्नेह,

तुम्हारा,
 
मोहन
 

श्री सी० एफ० एन्ड्रयूज,

द्वारा श्री चालीहा

जोरहाट, असम

अंग्रेजी पत्र (जी० एन० ९६६) को फोटो-नकलसे ।


४७. पत्र : वसुमती पण्डितको
गुरुवार
 
वैशाख बदी ६ [१४ मई, १९२५]
 

चि. वसुमती,

आज तुम्हारा पत्र मुझे यहाँ मिला। सब-कुछ चला गया और जो घर बचा है वह भी चला जाये तो भी इससे क्या होता है? अभी तो तुम्हें नवीबन्दर

१. देवदास १९२५ में नवीबन्दर गये थे। वैशाख बदी६ उस वर्ष १४ मईको पड़ी थी। इस दिन गांधीजी नवाखली में थे।

२. सौराष्ट्रमें।