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५१. भाषण: नवाखलीमें
१४ मई, १९२५
 

कौन कहता है कि स्त्रियाँ पराधीन हैं? शास्त्रोंमें कहीं नहीं लिखा है कि स्त्रियाँ पराधीन रहें। सीता रामकी अर्धांगिनी थीं और उनका रामके हृदयपर प्रभुत्व था। दमयन्ती पराधीन नहीं थी। महाभारतको पढ़ कर कौन ऐसा कह सकता है कि द्रौपदी पराधीन थी? जब पाण्डव उसकी रक्षा न कर सके तब कृष्णकी स्तुति करके अपनी रक्षा करनेवाली द्रौपदीको पराधीन कौन कहेगा? हमारे यहाँ सात सती नारियाँ प्रातः स्मरणीय मानी गई हैं, क्या वे पराधीन थीं? जिनमें पवित्र रहनेकी शक्ति है और जिनमें अपने शीलकी रक्षा करनेकी क्षमता है, उनको पराधीन कहना भाषाकी हत्या करना है — अधर्म है।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, ३१-५-१९२५


५२. भाषण : कोमिल्लाकी सार्वजनिक सभामें
१५ मई, १९२५
 

महात्माजीने समुचित उत्तर देते हुए कहा कि यह अभिनन्दन-पत्र बंगलामें दिया जा सकता था। भविष्यमें जो लोग मुझे अभिनन्दन-पत्र देना चाहें, वे यदि बंगला या हिन्दीमें देंगे तो मुझे अच्छा लगेगा। मुझे बताया गया है कि कोमिल्ला खादीके काममें आगे बढ़नका इच्छुक है, लेकिन तथ्योंसे इस बातको पुष्टि नहीं होती। मुझे इस बातका जरा भी खेद नहीं है कि कांग्रेसकी सदस्यताको शर्तमें चरखेको रखनमें मेरा मुख्य हाथ था। आप इस तथ्यको स्वीकार करते हैं कि आपका काम गाँवोंसे शुरू होना चाहिए; और आप किसी भी कार्यकर्तासे पूछिए, वह निस्संकोच यही जवाब देगा कि चरखा ही एकमात्र उपाय है — वही जनताको बढ़ती हुई गरीबीको मिटानेका सबसे कारगर रास्ता है। इसके बाद महात्माजीने उस इलाकेके लोगोंको इस बातके लिए धन्यवाद दिया कि वे पूरे मेलजोलसे साथ-साथ रह रहे हैं। उन्होंने स्वराज्य हासिल करनेके लिए इसकी नितान्त आवश्यकतापर बल दिया।

उन्होंने इस बातपर दुःख प्रकट किया कि अलीबन्धु उनके साथ नहीं आये हैं। उन्होंने कहा कि मौलाना शौकत अली बम्बईका काम खत्म करने के पहले वहाँसे

१. यह भाषण स्त्रियों द्वारा दिये गये मानपत्रके उत्तरमें दिया गया था।

२. यह भाषण नगरपालिका, जिला बोर्ड, व्यापारी संघ और शान्ति-सेनाकी ओरसे भेंट किये गये अभिनन्दन-पत्रोंके उत्तरमें दिया गया था।