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भाषण: विद्यार्थियोंके समक्ष

आना नहीं चाहते थे; और मौलाना मुहम्मद अली इसलिए दिल्ली नहीं छोड़ सके कि उन्हें दो-दो अखबारोंका संचालन करना होता है। लेकिन मैं कोमिल्ला कुछ नई बातें बताने के लिए नहीं आया हूँ। एक अभिनन्दन-पत्रमें निराशाको ध्वनि है, लेकिन निराशाको ध्वनि तो भारतमें सर्वत्र ही है। कांग्रेसकी सदस्यताके लिए मताधिकारकी शर्तके सम्बन्धमें मुझे कोई अफसोस नहीं है। मैं भारतके लिए चरखेके सिवाय दूसरा इलाज सोच ही नहीं सकता। मैं मध्यवर्ग के लोगोंसे अपनी आजीविका चलानेके लिए चरखा अपनाने की बात नहीं कहता, बल्कि उनसे गरीबोंके लिए दृष्टान्त रूप होने और हिन्दुस्तानके लिए कुर्बानी करनेकी दृष्टि से चरखा चलानेको कहता हूँ। इसके अलावा हिन्दुओं और मुसलमानोंको अपने दिलोंसे द्वेषभाव मिटा ही देने होंगे; और प्रसन्नताकी बात है कि इसके बारेमें दोनों वर्गोंमें मतभेद नहीं है। भाषणके अन्तमें उन्होंने अस्पृश्यताके बारेमें भी अपने विचार व्यक्त किये।

[अंग्रेजीसे ]

अमृतबाजार पत्रिका, १७-५-१९२५


५३. भाषण: विद्यार्थियों के समक्ष
कोमिल्ला
 
१५ मई, १९२५
 

महात्माजीने अपना भाषण अंग्रेजीमें दिया। उन्होंने विद्यार्थियोंको अपनी स्थिति साफ-साफ बता देने के लिए धन्यवाद देते हुए कहा कि याद रखिये भारतका भविष्य आप नवयुवकोंपर ही निर्भर करता है। उन्होंने स्वराज्यके आदर्शको पुनः स्पष्ट रूपसे समझाते हुए कहा कि यह 'अधर्मराज्य' नहीं बल्कि 'धर्मराज्य' है। आप लोग ब्रह्मचर्यका पालन करें, देशके पुननिर्माणमें आप लोगोंको कितनी गम्भीर जिम्मेदारियाँ उठानी हैं, उन्हें समझें; आप लोग पुस्तकोंका अध्ययन जरूर करें परन्तु मेरे खयालसे पुस्तकोंका स्थान गौण होना चाहिए, क्योंकि मनुष्यका प्रथम कर्तव्य तो अपने चरित्रका निर्माण करना है। उसके बिना समस्त ज्ञान निरर्थक हो जाता है। इस बात को मजबूतीसे गाँठ बाँध लीजिए कि चरखा आपके चरित्र- निर्माणमें सहायक होगा।

चरखेको उपेक्षाके कारणोंका विश्लेषण करते हुए महात्माजीने कहा कि इसका मुख्य कारण यह है कि आप लोग भारतमें बसनेवाले करोड़ों लोगोंकी भीषण गरीबीको


१. गांधीजीको विद्यार्थियोंकी ओरसे भेंट किये गये एक अभिनन्दन-पत्र में कहा गया था कि २ प्रतिशत विद्यार्थी ही सूत कातते और शुद्ध खादी पहनते हैं। इस मन्द प्रतिक्रियाका कारण है विद्यार्थियोंका चरखेमें विश्वासका अभाव और आलस्य ।