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५५. विक्रमपुरके कार्यकर्ताओंसे बातचीत
कोमिल्ला
 
१५ मई, १९२५
 

विक्रमपुरके कुछ कार्यकर्ताओंसे बातचीतके दौरान गांधीजीने कताई-सदस्यताको प्रस्तावित मंसूखीके बारेमें अपनी स्थिति स्पष्ट रूपसे समझाई। उन्होंने कहा :

अभी कांग्रेससे अलग हो जानेका समय नहीं आया है और न अखिल भारतीय कताई-संघकी स्थापनाका समय ही आया है। यदि कताई-सदस्यता समाप्त कर दी जाती है, तब किसी पृथक् संगठनके बारेमें सोचनेका समय आयेगा; लेकिन जिस प्रकार आज स्वराज्यवादियोंको कांग्रेसके एक अभिन्न अंगके रूपमें अपने कार्यक्रमपर अमल करनेकी छूट है, उसी प्रकार मुझे भी अलगसे अपने कार्यक्रमपर अमल करनेकी छूट मिली तो मैं पृथक् संगठन नहीं चाहूँगा। परन्तु यदि वह अनुमति न मिली तो मुझे अलग संगठन खड़ा करना ही होगा।

हिन्दुओं और मुसलमानोंमें पूर्ण एकताके सम्बन्धमें महात्माजीने कहा :

मैं हिन्दुओं और मुसलमानोंमें पूर्ण ऐक्यकी उम्मीद नहीं रखता; मैं सिर्फ स्वराज्य प्राप्त करनेके उद्देश्यसे, चाहे वह आज प्राप्त हो या सौ साल बाद, काम- चलाने लायक एकताकी आशा जरूर रखता हूँ। ऐसी काम चलाने योग्य एकता कायम होनी ही चाहिए। इस एकताका अभिप्राय सरकारसे कुछ सत्ता प्राप्त कर लेना नहीं है।

अस्पृश्यताके अर्थके सम्बन्धमें महात्माजीने कहा :

अस्पृश्यता तो स्वच्छतासे सम्बन्धित एक सवाल है। यदि कोई व्यक्ति साफ- सुथरा है तो मैं उसके हाथसे न केवल पानी ही ले सकता हूँ वरन् उसे अपना भोजन पकानेकी भी इजाजत दे सकता हूँ। लेकिन यह सहभोज नहीं है। यदि कोई व्यक्ति मेरी थाली ही में से मेरे साथ भोजन करता है तो उसे मैं सहभोज मानता हूँ। मैं अपनी थालीमें से अपनी पत्नीको भी नहीं खाने देता। वह एक हिन्दू पत्नी है और इसलिए प्रायः उसकी इच्छा मेरी थालीमें ही भोजन करनेकी हुआ करती है। लेकिन जैसे मैं हिन्दूधर्मकी हर बातको हमेशा नहीं ग्रहण करता; वैसे ही मैं पत्नीको अपनी थालीमें भोजन करनेकी अनुमति नहीं देता।

[अंग्रेजीसे]

अमृतबाजार पत्रिका, १७-५-१९२५