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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

श्रीमन्, उनका व्यापार तो आपके दौरेके कारण ही चमका है।

नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आप चाहें तो इसे यों कह सकते हैं कि मेरे दौरेके कारण कुछ समयके लिए उनके व्यापार में तेजी आ गई थी। किन्तु व्यापार फिर- से अपनी सामान्य अवस्थामें पहुँच जायेगा और वह सामान्य अवस्था पूर्णतः सन्तोषजनक है। सूतकी हाटमें जाइए। जहाँ पहले कुछ ही मन सूत बिकने आता था, आज सैकड़ों मन बिक रहा है। सैकड़ों परिवार यदि चरखेसे अपनी पूरी जीविका नहीं कमा रहे हैं तो अपनी आमदनी तो बढ़ा ही रहे हैं। हाटके दिन लोग कार्यकर्ताओंको किस तरह घेरते हैं और उनसे कताईके लिए रुई माँगते हैं, यह एक देखने लायक दृश्य होता है। आप पूछ सकते हैं कि यदि ये कार्यकर्ता अपने कार्य क्षेत्रसे हट जायें तो क्या होगा? लेकिन वे हट नहीं सकते। उन्होंने अच्छी आमदनीवाले अपने धन्धोंको यों ही नहीं त्यागा है। अभय आश्रमके लोगोंके धनुषमें तीन प्रत्यंचाएँ हैं। एक तो औषधालय, जिससे वे गुजर-बसरके लायक आमदनी कर लेते हैं। इसे सुरेश बाबू एक चिकित्सा विद्यालय खोलकर बढ़ाना भी चाहते हैं। उनमें चिकित्सा विषयक काफी प्रतिभा है। इस आश्रममें खादीके कामके अलावा, जो कि उसका मुख्य कार्य है, वे लड़कोंका एक काफी बड़ा स्कूल चला रहे हैं। वे इन लड़कोंके जरिये लोगोंको और ज्यादा प्रभावित करनेकी आशा करते हैं। और फिर प्रवर्तक संघके कार्यकर्ता भी है। मैं उनके कामसे परिचित नहीं हूँ, लेकिन इतना जानता हूँ कि उनकी संख्या २०० है और वे अनेक कठिनाइयोंके बावजूद काम कर रहे हैं।

लेकिन ऐसी केवल तीन ही संस्थाएँ है। प्रश्नकर्त्ताने अब भी अपना असन्तोष जाहिर करते हुए कहा।

बिलकुल नहीं; कई और संस्थाएँ हैं जो अपने विनम्र ढंगसे काम कर रही है और यदि वे केवल तीन ही होतीं, तो भी क्या था? जमनालालजी, राजगोपालाचारी, शंकरलाल बैंकर-जैसे लोग हैं, जो अपने चौबीसों घंटे इसी कामको देते हैं। वे पूरे मनोयोगसे और दृढ़तापूर्वक काम कर रहे हैं। वे इतने धैर्यके साथ काम कर रहे हैं कि सौ साल भी लगा रहना पड़े तो भी हटनेवाले नहीं। किन्तु साथ ही वे ऐसी मनोकामनासे काम कर रहे हैं कि सफलता कल ही मिल जाये। और क्या आप यह नहीं जानते कि १९०५-१९०८ का स्वदेशी आन्दोलन मौजूदा आन्दोलनसे भिन्न किस रूपमें है ? वह आन्दोलन ऐसा था जिसकी अवधारणा तो बहुत सुन्दर थी, लेकिन उसके पीछे कोई ज्ञान या संगठन नहीं था। उसने विदेशी कपड़ोंके बहिष्कारको एक परिचायक संकेत शब्दके रूप में रख छोड़ा था और बम्बई तथा अहमदाबादकी असमर्थ मिलोंपर भरोसा कर रखा था। आज आप उन सभी विपत्तियोंके प्रति सतर्क हैं जो पहलेवाले आन्दोलनपर आ पड़ी थीं। आज आप यह भली-भांति दिखा देनेकी स्थितिमें है कि यदि भारतकी सभी मिलें जला दी जायें तो भी आप अपने कुटीर-स्थित कतैयों और बुनकरोंके बनाये कपड़ेसे सारे भारतको कपड़ा पहना सकते हैं।

हमें अत्यधिक आत्मविश्वास भी नहीं कर बैठना है। आप उन लोगोंकी बात जानते हैं जिन्हें उन दिनों कपड़ेको कमीके कारण फंदेसे लटककर प्राण त्यागने पड़े थे।