पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/१४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११३
रामनामकी महिमा

था। मुझे यह पता नहीं था कि मकान-मालकिन वेश्यावृत्तिसे आजीविका कमाती है। पर ज्यों-ज्यों खेल जमने लगा त्यों-त्यों रंग भी बदलने लगा। उस स्त्रीने कटाक्ष आदि शुरू किये। मैं अपने मित्रको ध्यानसे देख रहा था। उन्होंने मर्यादा छोड़ दी थी। मैं ललचा गया। मेरे चेहरेका. रंग बदल गया। और उसपर काम-विकार उभर आया। मैं अधीर हो उठा था।

पर जिसे राम बचाता है, उसे कौन मार सकता है ? उस समय मेरे मुखमें तो राम न था, पर मेरे हृदयमें अवश्य था। मेरे मुखमें तो वासनाको भड़कानेवाली भाषा थी। मेरे इस भले मित्रने मेरा रंग-ढंग देखा। हम एक-दूसरेसे अच्छी तरह परिचित थे। उन्हें ऐसे कठिन प्रसंगोंकी स्मृति थी जब मैं अपने संकल्पबलसे अपवित्र होनेसे बच सका था। परन्तु इस मित्रने देखा कि इस समय मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है। उन्होंने यह समझ लिया कि यदि यही हालत रही और अधिक रात बीती तो मैं भी पतित हुए बिना न रहूँगा।

विषयी मनुष्योंमें भी सद्वृत्तियाँ होती हैं। इस बातकी अनुभूति मुझे इस मित्रके द्वारा पहले-पहल हुई। मेरी दीन दशा देखकर उन्हें दुःख हुआ। मैं उनसे उम्रमें छोटा था। उनके माध्यमसे रामने मेरी सहायता की। उन्होंने प्रेमबाण छोड़े,"मोनिया, (मोहनदासका दुलारमें बनाया हुआ रूप । मेरे माता, पिता तथा हमारे कुटुम्बके सबसे बड़े चचेरे भाई, मुझे इसी नामसे पुकारते. थे। इस नामसे पुकारनेवाले चौथे ये मित्र थे जो मेरे धर्म-भाई साबित हुए।) सावधान ! मैं तो गिर चुका हूँ, यह बात तू जानता है। परन्तु मैं तुझे नहीं गिरने दूंगा। तू अपनी माँसे की हुई प्रतिज्ञा याद कर। यह काम तेरा नहीं है। तू भाग यहाँसे। जा, सो जा। नहीं जाता? रख पत्ते !"

मैंने कुछ जवाब दिया या नहीं, यह मुझे याद नहीं पड़ता। मैंने ताश रख दिये। एक क्षणके लिए दुःखी हुआ। मुझे लज्जा आई और मेरी छाती धड़कने लगी; फिर मैं उठ खड़ा हुआ और अपने बिस्तरपर जा लेटा।

मुझे नींद नहीं आई और मैं रामनाम जपने लगा । मनमें कहने लगा, 'कैसा बचा, मुझे किसने बचाया? प्रतिज्ञाको धन्यवाद । माँको धन्यवाद । मित्रको धन्यवाद । रामको धन्यवाद ।' मेरे लिए तो यह चमत्कार ही था। यदि मेरे मित्रने मुझपर रामबाण न छोड़ा होता तो मैं आज कहाँ होता?

राम-बाण वाग्यां रे होय ते जाणे
प्रेम-बाण वाग्यां रे होय ते जाणे?

मेरे लिए तो यह अवसर ईश्वरके साक्षात्कारका था।

अब यदि मुझे सारा संसार कहे कि ईश्वर नहीं है, राम नहीं है तो मैं उसे झूठा कहूँगा। यदि उस भयंकर रातको मेरा पतन हो गया होता तो आज मैं सत्या- ग्रहकी लड़ाइयाँ न लड़ता होता, अस्पृश्यताके मैलको न धोता होता, चरखेकी पवित्र


१. जिसे रामवाण लगा है, जिसके प्रेमवाण लगा है, वही जान सकता है कि वह क्या चीज है।

२७-८