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रामनामकी महिमा
जब लग गज बल अपनों बरत्यौ
नेक सर्यो नहिं काम ।
निर्बल व बल राम पुकार्यो
आये आधे नाम।

तब यह रामनाम है क्या चीज? क्या तोतेकी तरह रामनाम रटना? हरगिज नहीं। यदि ऐसा हो तो हम सब रामनाम रटकर पार हो जा सकते है। रामनामका उच्चारण तो हृदयसे ही किया जाना चाहिए। फिर उसका उच्चारण शुद्ध न हो तो हर्ज नहीं। हृदयकी तोतली बोली ईश्वरके दरबारमें कबूल होती है। हृदय भले ही 'मरा मरा' पुकारता रहे — फिर भी हृदयसे निकली पुकार जमा खातेमें लिखी जायेगी। परन्तु यदि मुख रामनामका शुद्ध उच्चारण करता रहे और हृदयका स्वामी रावण हो तो वह शुद्ध उच्चारण भी नामेकी ओर लिखा जायेगा।

तुलसीदासने 'मुखमें राम बगलमें छुरी' की उक्ति चरितार्थ करनेवाले बगला भगतके लिए रामनाम-महिमा नहीं गाई। उसके सीधे पासे भी उलटे पड़ेंगे। किन्तु जिसने रामको हृदयमें स्थान दिया है उसके उलटे पासे भी सीधे पड़ेंगे। 'बिगरी' का सुधारनेवाला राम ही है और इसीसे भक्त सूरदासने कहा है —

बिगरी कौन सुधारे?
राम बिन बिगरी कौन सुधारे रे।
बनी-बनीके सब कोई साथी,
बिगरीके नहिं कोई रे।

इसलिए पाठक खूब समझ लें कि रामनामके जपका सम्बन्ध हृदयसे है। जहाँ वाणी और मनमें एकता नहीं वहाँ वाणी केवल मिथ्या चीज है, दम्भ है, शब्दजाल है। ऐसे जपसे चाहे संसार भले धोखा खा जाये, पर वह अन्तर्यामी राम कहीं धोखा खा सकता है? हनुमानने सीताकी दी हुई मणिमालाके मनके फोड़ डाले क्योंकि वे देखना चाहते थे कि उनके भीतर रामनाम अंकित है या नहीं? अपनेको समझदार समझनेवाले सुभटोंने उनसे पूछा, 'सीताजीकी मणिमालाका ऐसा अनादर क्यों?' हनुमानने उत्तर दिया, 'यदि उसके मनकोंमें रामनाम अंकित न हो तो वह सीताजीकी दी हुई होनेपर भी मेरे लिए भार-रूप ही होगी।' तब उन समझदार सुभटोंने मुंह बनाकर पूछा, 'क्या तुम्हारे भीतर रामनाम अंकित है।' हनुमानने तुरन्त छुरीसे अपना हृदय चीरकर दिखाया और कहा, "देखो, इसमें रामनामके सिवा और कुछ हो तो मुझे बताओ।' सुभट लज्जित हुए। हनुमानपर पुष्पवृष्टि हुई और उस दिनसे रामकथाके समय हनुमानका आवाहन आरम्भ हुआ।

हो सकता है यह कथा हो या नाटककारकी मनगढन्त रचना हो, पर उसका सार नित्य सत्य है। जो हृदयमें है वही सच है।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, १७-५-१९२५