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सर सुरेन्द्रनाथ बनर्जी

प्रेमसे छातीसे लगा कर मिले। वे क्षीणकाय तो हो गये थे, किन्तु फिर भी सीधे खड़े थे। उनकी आवाजमें कोई कमजोरी नहीं थी। उनकी उम्र ७७ साल है, फिर भी वे हर बातकी चर्चा १७ वर्षीय नवयुवककी तरह दिलचस्पीसे करते थे। मैंने जब उनकी स्मरणशक्तिकी प्रशंसाकी तो उन्होंने कहा, 'मेरी स्मरणशक्ति तो आज भी ज्योंकी-त्यों है। मैं जब पाँच वर्षका था तबकी बातें भी मुझे इतनी अच्छी तरह याद है कि मैं उनका वर्णन हू-बहू कर सकता हूँ।' उन्होंने अपने संस्मरणोंकी पुस्तक अभी हालमें ही प्रकाशित की है। उसे लिखने में उनको नौ वर्ष लगे थे। उन्होंने जिन कापियोंमें ये संस्मरण लिखे थे वे मुझे दिखाईं। वे फुलस्केप आकारकी पाँच या सात कापियाँ थीं। उनकी लिखावट इतनी साफ और एकसार है कि उसको देखकर मुझे गर्वका अनुभव हुआ। लिखते समय उनका हाथ कहीं भी काँपता दिखाई नहीं दिया।

मैंने पूछा, 'इस समय आप क्या-क्या पढ़ रहे हैं ?' उन्होंने हँसकर कहा, 'बताऊँ ? मैं तो अपने संस्मरणोंको ही दूसरी आवृत्तिके लिए पढ़ रहा हूँ। मुझे उनमें कुछ संशोधन-परिवर्धन करना है। पुस्तक-विक्रेताओंने सूचित किया है कि एक वर्षके भीतर सब प्रतियाँ बिक जायेंगी; इसलिए मैं [ दूसरी आवृत्तिके लिए] तैयार हो जाना चाहता हूँ।'

वे अपनी आसपासकी तमाम बातोंमें उत्साहसे दिलचस्पी लेते हैं। उन्होंने मुझसे यह वादा करा लिया है कि बंगाल छोड़नेसे पहले मैं उनसे एक बार फिर मिलू । उन्होंने कहा, 'यदि आपको बैरकपुर आनेका समय न मिले तो मैं खुद आपसे मिलने जरूर आऊँगा।' मैंने जवाब दिया, 'नहीं, मैं आपको तकलीफ नहीं देना चाहता, मैं लौटती बार आपसे मिलनेका वक्त जरूर निकालूंगा।'

जब उनकी शारीरिक शक्तिकी बात आई तो उन्होंने कहा, में ९१ वर्षकी आयुतक जीऊँगा। मुझमें अभी भी इतना उत्साह है कि इतने वर्ष कोई अधिक नहीं लगते।'

भारतभूषण मालवीयजीने अपनी आयु सौ वर्ष नियत की है। इसलिए मैंने पूछा, 'आप मालवीयजीकी तरह अपनी आयु सौ वर्ष क्यों नहीं कूतते? ' उन्होंने उत्तर दिया, 'मुझे नहीं लगता कि मैं इतनी आयुतक काम करने योग्य रहूँगा। और अशक्त हो जाने के बाद मैं जीना नहीं चाहता।'

उनका विश्वास है कि उनकी दीर्घायुका रहस्य उनका अखण्ड नियमपालन और विधिवत् काम करने का अभ्यास है। मैं सुन चुका था और उन्होंने भी इस बातका समर्थन किया कि उन्होंने अपने इतने कार्यव्यस्त जीवनमें भी रातकी निश्चित गाड़ीसे नित्य बैरकपुर वापस आनमें कभी नागा नहीं किया। उन्होंने कहा, लोकसेवा करते हुए' मैंने काममें संलग्न रहनेकी जितनी आवश्यकता समझी थी उतनी ही आवश्यकता नियमित रूपसे आराम करनेकी भी। इसलिए मैं रातको आराम न करना सेवाच्युत होनेका पाप मानता हूँ।

१. यह अनुच्छेद यंग इंडियासे उद्धत है।