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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। इसीलिए तो मनुष्य सादगी अपनाता है। इसलिए सादगी अपनानेवालोंको चाहिए कि वे अव्यवस्था और अस्वच्छताको त्याग दें।

ऐसे गुणोंका विकास करनेके लिए थोड़ा-बहुत अवकाश तो अवश्य चाहिए। दुकान-कर्मचारियोंको प्रातःकालसे रात गयेतक दुकानोंमें बैठना ही पड़ता है। वे इसीलिए अस्वच्छता-जैसे दोषोंको त्यागनेका विचारतक नहीं कर सकते। उन्हें रूढ़िके कारण जितनी स्वच्छता रखनी पड़ती है वे उतनी स्वच्छता रखकर काम चला लेते हैं। वे सादगीके निमित्त सादगी नहीं रखते। वे मजबूरीके कारण साधु-जैसे लगते हैं। यदि वे धन कमा सकें तो शक्तिभर पूरा परिग्रह करें। फिर भी ऐसे लोगोंके लिए कामके घंटे कम करनेकी बेशक जरूरत है। वे अपने बचे हुए समयका दुरुपयोग करें, यह बिल्कुल सम्भव है; किन्तु यह जोखिम उठानेके ही योग्य है, इसमें कोई सन्देह नहीं। इसका उपाय स्वयं ये मुनीम आदि कर्मचारी ही कर सकते हैं। यदि उनमें आत्मसुधार करनेका उत्साह हो तो वे उसका मार्ग भी खोज निकाल सकते हैं। यदि मालिकोंके मनमें दया हो या वे अपना स्वार्थ समझते हों तो वे भी उपयुक्त सुधार कर सकते हैं।

कातनेवालोंसे

मैं कई बार लिख चुका हूँ कि सूत कातनेका मतलब ज्यों-त्यों करके तार निकालना नहीं है। आटेको किसी तरह गुमडगुमड़ा कर जैसे-तैसे बेल-बाल कर चाहे जैसी आगपर कच्चा-पक्का सेक लें तो रोटी पकाना नहीं हो जाता और यदि उसे रोटी मानकर खाया जाये तो बदहजमी हो जाती है। इसी तरह चाहे जैसी रुई लेकर भली-बुरी धुनकर उसका मोटा-झोटा तार निकाल लें तो वह सूत नहीं होता। सूत तो वही होता है जो आसानीसे बुना जा सके। हमें इस बारेमें मिलके सूतको अपने लिए आदर्श मानना चाहिए। हम जबतक वैसा सूत नहीं कातने लगते तबतक यही माना जायेगा कि हममें खामी है। यह अनुभवसिद्ध है कि हम उतना अच्छा ही नहीं बल्कि उससे भी अच्छा सूत कात सकते हैं। मिलके अच्छे सूतसे हाथकता अच्छा सूत हमेशा ज्यादा अच्छा होता है। उसके बने कपड़ेमें जो मुलायमी होती है वह मिलके कपड़ेमें कभी नहीं आती। परन्तु जबतक हम उस स्तरपर नहीं पहुँच जाते तबतक खादीके खिलाफ शिकायतें आती रहेंगी और हर बुननेवालेको खादी बुननेके लिए तैयार करने में दिक्कत होगी। हालमें अ॰ भा॰ खादी बोर्डके पास एक खादी कार्यकर्ताका पत्र आया है। मुझे ये विचार उसके कारण लिखने पड़े हैं। कताई-सदस्यतासे पहले कांग्रेस कार्यसमितिके सदस्यको अपना सूत अ॰ भा॰ खादी बोर्डको भेजना पड़ता था। उस सूतकी खादी बुनवानेमें जो-जो अनुभव हुए हैं वे बड़े कीमती माने जा सकते हैं। पूर्वोक्त रिपोर्ट इस अनुभवका ही एक परिणाम है। उसमें वे कार्यकर्ता लिखते हैं कि सूत इतना कच्चा-कमजोर था कि बुननेवाला उसे बुन नहीं सकता। फिर सूत ठीक तरह अटेरा नहीं गया है और अटेरनका माप हरएकने अपनी-अपनी मर्जी के मुताबिक रखा है। इससे बुनकरोंको कड़े भरनेमें बहुत समय लगाना पड़ता है। ये दोनों कठिनाइयाँ दूर की जानी चाहिए। कार्यसमितिके