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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

फिर ऐसे कामोंमें हिसाब-किताब तो साफ रखना ही चाहिए। पर हम देखते हैं कि वह नहीं रहता। इसका कारण अप्रामाणिकता नहीं बल्कि अनुभवकी कमी और व्यवस्था-विभागकी लापरवाही मालूम होती है। दो पैसे ज्यादा देकर भी कामकी अच्छाई कायम रखी जा सके तो ऐसे काम अधिकांशमें अवश्य ही स्वावलम्बी बनाये जा सकते हैं।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १७-५-१९२५
 

६२. पत्र : देवदास गांधीको

मौनवार
वैशाख वदी १० [१७ मई, १९२५][१]

चि॰ देवदास,

मैं तुम्हारे सम्बन्धमें निर्भय रहता हूँ, इसलिए पत्र नहीं लिखता। फिर मैं जानता हूँ कि तुमको मेरे समाचार तो मिलते रहते हैं। मुझे तुम्हारा नवी जाना ठीक लगा है। दूसरोंको भी कुछ ठंडक मिलेगी। करोड़ों लोगोंको तो सर्दी और गर्मी दोनों समान रूपसे सहनी ही होती है। हम उस तरह नहीं सहते; यह मैं चाहता हूँ कि हम भी उनके जैसे रहते। किन्तु हमारा जीवन जिस तरहका बन गया है, वह जल्दी कैसे बदल सकता है।

मैं तो प्रसन्न हूँ। सतीश बाबूकी व्यवस्थाके बारेमें तो कुछ कहनेकी जरूरत ही क्या हो सकती है। क्रिस्टोदासको[२] एक दिन ज्वर आ गया था। सब बच्चों और बच्चियोंको आशीर्वाद।

बापूके आशीर्वाद

मूल गुजराती पत्र (जी॰ एन॰ २०४६) की फोटो-नकलसे।

 
  1. पत्रपर डाककी मुहर १८-५-१९२५ की है; वैशाख वदी दशमी १७ मईको थी।
  2. गांधीजीके सचिव।