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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रखे हुए कागजके वे टुकड़े ही हैं जो आपके हृदयके उद्गार व्यक्त करते हैं और जिनके लिए मेरे हृदयमें भी स्थान है। आपने ढाकाके गत वैभवकी बात की। यह बहुत ही सच है। मैंने एक स्थानसे दूसरे स्थानका भ्रमण करते हुए यह देख लिया है कि बंगालके लिए अपने पुराने गौरवको पुनः प्राप्त कर लेनेकी असीम सम्भावनाएँ हैं। ऐसा कुछ कीजिए जिसमें बंगाल एक बार फिर अपने कच्चे माल, चावल, जूट या रुईका नहीं, बल्कि सुन्दर कपड़ेका निर्यात करने लगे और अपनी उस महान् कलाको पुनः प्रतिष्ठित करे, जिसके लिए वह प्रसिद्ध था। यह निश्चित ही समझिए कि जबतक आप हाथकताईको समस्याको नहीं सुलझाते, तबतक सुन्दरतम कलाओंको पुन: प्रतिष्ठित नहीं किया जा सकता। मुझपर यह आरोप लगाया जाता है कि भारत जिसके लिए इतना प्रसिद्ध रहा है मुझमें उस कलाके सौन्दर्यको अनुभूतिकी क्षमता नहीं है। लेकिन मेरा हृदय उस सुन्दर कलाके यहाँसे उठ जानेपर रोता है। हमें अपने बनाये हुए कपड़े चाहिए। जबतक हम अपनी जरूरतका सूत खुद नहीं कातते, हमारे पास अपना बनाया कपड़ा नहीं हो सकता। अगर आप पेरिस या जापानसे मलमलका आयात करेंगे, तो वह आपका या मेरा नुकसान ही होगा। और अगर आप पेरिस या जापानसे बहुत ही महीन सूतका, जैसा कि मैने ढाकामें देखा, आयात करेंगे तो आप इस कलाको फिर कभी प्रतिष्ठित नहीं कर पायेंगे। ऐसी अवस्थामें आप बंगालके करोड़ों मूक लोगोंके लिए क्या कर पायेंगे? आप उन बहनोंके लिए क्या कर पायेंगे, जिनका पर्देके पीछे दम घुटा जा रहा है? मैं कोमिल्लाके एक गाँवमें गया था। वहाँ हमारी उन बहनोंके, जिन्हें जिला बोर्डमें अपना कोई प्रतिनिधि भेजनेका अधिकार नहीं है, एक प्रतिनिधिने इस बातका आग्रह किया कि उन्हें रुई दी जाये और सूत ले लिया जाये। अगर आप वहाँ उनसे सूत प्राप्त करने की व्यवस्था कर देते और उससे उन्हें भले ही एक, दो या तीन रुपये ही मिलते हैं तो आप इस तरह उनको रोटी दे पाते हैं। यह उनकी कितनी बड़ी सेवा है। क्या आप ऐसा समझते हैं कि आपका जिला बोर्ड और पीपुल्स एसोसिएशन उनकी मदद कर सकता है?

मैं अभी-अभी अस्पृश्योंकी, भंगियोंकी सभासे आया हूँ। ये लोग आपके शहरको साफ-सुथरा रखते हैं। उनकी सेवाएँ आपके लिए अनिवार्य हैं। उन्होंने मुझे बताया कि उनके ८० बच्चे हैं, जिन्हें वे पढ़ाना चाहते हैं। लेकिन उनके लिए कोई स्कूल नहीं है। उनसे मेरे यह पूछने पर कि क्या आप उनके लिए कोई स्कूल खुलवाना चाहते हैं, उनमें से एकने कहा कि 'आपको दिये मानपत्र में हमने स्कूलकी माँग की है।'

खद्दरपर बोलते हुए महात्माजीने कहा :

अगर आप और मध्यमवर्गीय लोग प्रतिदिन सिर्फ आधा घंटा कताईमें लगायें तो मैं ढाकाको खद्दरसे भर दे सकता हूँ। फिर तो हम जापान, मैंचेस्टर या किसी भी दूसरी जगहसे स्पर्धा कर सकते हैं। लोग खद्दर पहनना चाहते हैं। यह पक्की बात है कि वे सब खद्दर पहनने लगेंगे। अगर आप तय करलें तो ढाकाको कपड़े की