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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और शक्तिकी बर्बादी है? हाँ, अगर वह बेसुरे सुरमें और दर्पमें भरकर उनके सामने वंदेमातरम्को भी अलापे तो यह जरूर समय और शक्तिकी बर्बादी होगी। लेकिन कताईका मतलब इतना ही नहीं है। वह उद्देश्यपूर्ण चीज है और उसका मतलब है अधिक उत्पादन। इसका उद्देश्य जनसाधारण और आपके बीच एक कड़ी कायम करना है। इसके यन्त्रवत् उपयोगसे भी कुछ-न-कुछ हासिल हो जाता है और फिर इसके अलावा दूसरा ऐसा कोई काम नहीं है जो इतनी कम कोशिश करके ही सीखा जा सकता हो और जिसे हम करोड़ों लोगोंमें से क्या अच्छे और क्या साधारण सभी व्यक्ति कर सकते हों। और विद्यार्थियोंमें से तो सभीको कातना चाहिए, क्योंकि वे देशके जाग्रत तत्त्व हैं। उनका जीवन अभी शुरू नहीं हुआ है और नये विचारोंको वे जितनी आसानीसे ग्रहण कर सकते हैं उतनी आसानीसे और कोई नहीं कर सकता। सेवाकी लम्बी अवधि उनके सामने पड़ी हुई है। फिर नई शराब नई बोतलोंमें ही भरी जा सकती है, पुरानी बोतलोंमें नहीं। जरा सोचिए तो सही कि उत्साही और बुद्धिमान विद्यार्थियोंका अनुशासित समूह कितना कुछ कर सकता है। सोचकर देखिए कि ढाकाके ११,००० विद्यार्थियों द्वारा प्रतिदिन आधा घंटा कताई करनेसे जो उत्पादन होगा, वह कितना जबरदस्त होगा। क्या आप यह जानते हैं? अगर आप सब खादी पहनें तो आपके खर्चे हुए पैसोंका अधिकांश कताई करनेवालोंको मिलेगा? आप शायद इंग्लैंड और उसकी साधन-सम्पन्नताके बारेमें सोचते होंगे। लेकिन वह दूसरे राष्ट्रोंके शोषणपर जीता है। उसने हमारे श्रमको अपनी मुट्ठीमें कर रखा है। यह एक ऐसी आर्थिक क्षति है, जो उन सभी करों और अन्य आर्थिक क्षतियोंसे बढ़कर है, जिनकी ओरसे दादाभाई नौरोजीने हमें सतर्क किया था। इस अप्रत्यक्ष क्षतिको वे भी नहीं देख पाये थे। लेकिन मैं, जो उनके चरण-चिन्होंपर चलनेवाला उनका शिष्य हूँ, इस अप्रत्यक्ष क्षतिको देख सका हूँ और मेरा कहना है कि हमारे राष्ट्रको निठल्लोंका राष्ट्र बना दिए जानेसे हमारी जो आर्थिक क्षति हुई है, वह सर्वाधिक विनाशकारी है।

गांधीजीने जबतक स्पष्ट रूपसे यह समझा नहीं दिया कि हमारे ऊपर थोपे इस आलस्यसे इस शस्यश्यामल भूमि का कैसा विनाश हुआ है। वे जगन्नाथपुरीके अभाव, बिहारकी गरीबी और देशके अन्य भागोंकी उन स्त्रियोंकी बात करते हुए, जिनके लिए एक आना प्रतिदिन भगवान्की भेजी सौगात जैसा है, इसी तरह बोलते चले गए।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २८-५-१९२५