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६७. पत्र: मुहम्मद अलीको[१]

१८ मई, १९२५

मेरे प्यारे दोस्त और बिरादर,

आपके लिखनेसे पहले ही मैंने आपकी स्थितिका अन्दाजा लगा लिया था। ईमानदार कार्यकर्ताओंका भाग्य ऐसा ही होता है। पहले हम उस दिशामें ज्वारके साथ तैरते चले जा रहे थे; उसमें हमें कुछ करना नहीं पड़ रहा था। हम जब ज्वारकी विपरीत दिशामें तैरते हैं, तभी हमें कोशिश करनी होती है। हमें अब पता चलेगा कि हममें कुछ दम है या नहीं। शत्रु कितना ही दुर्दम हो, उसके विरुद्ध लड़ना सच्चे सिपाहीके लिए बच्चोंका खेल है। लेकिन अपने ही लोगोंमें नैतिक बलकी कमी, सन्देहकी भावना, अनुशासनहीनता और विश्वासको कमीका मुकाबला बड़ी मुश्किल चीज है। आपको और मुझे इस असलियतका मुकाबला करना है।

मेरी दुआएँ हमेशा आपके साथ है और आपके लिए हैं। आप दोनों भाइयोंमें भी मेरा विश्वास अचल है; हालाँकि आपके कामके तरीकेमें नहीं। यदि आप हर कामका वक्त सख्तीके साथ अलग-अलग रखें तो आपको समयकी कमी महसूस नहीं होगी। जो आदमी जितना अधिक व्यस्त रहता है उसके पास और भी कामोंके लिए समय निकल आता है। ईश्वरसे डरनेवाले व्यक्तिके लिए सारा दिन प्रार्थनाका ही समय है। प्रार्थनाका निश्चित समय होना केवल एक इशारा है और उससे यही साफ होता है कि सभी कामोंके लिए हमारा समय निश्चित होना चाहिए। क्या हमने सब कुछ ईश्वरको समर्पित नहीं किया है? हमारा खाना भी एक प्रार्थना हो सकती है और व्रत रखना भी एक प्रवृत्ति। उपदेश काफी हो गया।

मुझे आप लोगोंकी और गुलनारकी[२] बड़ी याद आती है। मेरे सारे फूल और छोटी-छोटी सुन्दर चीजें व्यर्थ चली जाती है। उससे कहिए कि इतनी बड़ी न हो जाये कि मैं उसे खिला न सकूँ।

आप सबको सप्रेम,

आपका,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य : नारायण देसाई

  1. पचपि पत्रके मसविदेपर कोई पता नहीं लिखा है, फिर भी विषय-वस्तुसे स्पष्ट हो जाता है कि यह पत्र मुहम्मद अलीको लिखा गया था।
  2. मुहम्मद अलीकी बेटी, शुएब कुरैशीकी पत्नी।