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६८. मथुरादास त्रिकमजीको लिखे पत्रका अंश

वैशाख बदी १०, [१८ मई, १९२५][१]

आनन्दपर मेरा [पूर्व जन्मका कुछ] ऋण था न?

[गुजरातीसे]
बापुनी प्रसादी,
 

६९. भाषण : महिलाओंकी सभा, मैमनसिंहमें[२]

१९ मई, १९२५

महात्माजीने महिलाओंको अभिनन्दन-पत्र तथा उपहारोंके लिए धन्यवाद देनके उपरान्त कहा कि स्वराज्यसे मेरा अभिप्राय धर्मराज्य या रामराज्यसे है। भारतके लिए धर्म और नैतिकता-हीन स्वराज्य हो ही नहीं सकता। रामराज्यके लिए हमें सीताजीको अपेक्षा है। सीताजीके ही कारण हम रामचन्द्रकी पूजा कर पाते हैं। सीताके जन्मके बिना रामचन्द्रका अस्तित्व असम्भव है। मैं प्रार्थना करता हूँ कि मेरी बहनें भी सीताके समान हों। सीताने हृदय और शरीरको पवित्र रखा। मैं अपनी बहनोंसे आग्रह करता हूँ कि खद्दर पहनकर वे अपने शरीर शुद्ध बनायें। सीताजी भारतमें बना कपड़ा पहनती थीं। उनके समयमें विदेशी वस्त्रका भारतमें तनिक भी आयात नहीं किया जाता था। लेकिन आजको महिलाएं फ्रांस, जापान और मैचेस्टरसे मँगाया हुआ कपड़ा चाहती हैं। विदेशी वस्त्र पहनना अशुद्ध है, क्योंकि वह सूचित करता है कि वे अपने गरीब भाइयोंको भूल गई हैं। किसी समय हमारी लाखों बहनें चरखेसे सूत कातकर जीविकोपार्जन करती थीं। लेकिन अब हमारे विदेशी वस्त्रोंके इस्तेमाल करने की वजहसे उनका चरखेका काम बन्द हो गया है। बहनोंको प्रतिदिन कमसे-कम आधा घंटा सूत कातना चाहिए। महात्माजीने देशी मिलोंमें बने कपड़ेको अर्ध-खद्दर कहा। उन्होंने कहा कि यद्यपि हमारी सब बहनें जो सभामें आई हैं, खद्दर पहने हैं, लेकिन ऐसा इन्होंने या तो मेरे प्रति अपना स्नेह व्यक्त करनके लिए या मुझे धोखा देने के लिए किया होगा। सबसे ज्यादा जरूरी चीज है बहनोंमें भारतके प्रति प्रेम——उससे उन्हें खद्दर पहनने की प्रेरणा मिलेगी। यदि मैमनसिंहमें

  1. साधन-सूत्रके अनुसार, लेकिन १९२५ में वैशाख वदी १०, १७ मई १९२५ की थी।
  2. सुबह आयोजित इस सभामें गांधीजीको हाथकता सूत, जेवर और सिक्के भेंट किये गये थे। अभिनन्दन-पत्र बंगलामें पढ़ा गया था, जिसका उत्तर गांधीजीने हिन्दीमें दिया था। मूल भाषण उपलब्ध नहीं है।