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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बहनें निम्नलिखित तीन काम करनेकी जिम्मेदारी लें तो मुझे काफी सन्तोषका अनुभव होगा। वे हैं:

१. प्रतिदिन आधा घंटा चरखेपर सूत कातना।

२. खद्दरका इस्तेमाल।

३. उन नामशूद्रोंके प्रति जिन्हें गलतीसे अस्पृश्य माना जाता है, घृणा-भावका त्याग।

अन्तमें महात्माजीने कहा कि मुझे सूत, रुपया और आभूषणके रूपमें जो उपहार दिये गये हैं, उन्हें खद्दर प्रचारमें लगाया जायेगा।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, २२-५-१९२५
 

७०. भाषण : अभिनन्दन-पत्रोंके उत्तरमें[१]

१९ मई, १९२५

इस समय अली बन्धुओंमें से कोई भी मेरे साथ नहीं है, इसलिए मैं बहुत असहाय महसूस कर रहा हूँ। उनके साथ रहनेपर मुझे भरोसा रहता है कि मैं अपनी बात मुसलमान भाइयोंके हृदयतक आसानीसे पहुँचा सकता हूँ।[२]

हिन्दू-मुस्लिम समस्याकी चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि यह बड़े दुःखकी बात है कि दोमें से कोई भी जाति अपने बड़े-बड़े स्वार्थोंको तो क्या, छोटे-छोटे स्वार्थोंको भी छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। आज तो वे दाल-रोटीके लिए नहीं, बल्कि लकड़ी- पत्थर और सर्वथा महत्त्वहीन चीजोंके लिए झगड़ रहे हैं। मैं महसूस करता हूँ कि जबतक हमारा हृदय साफ और शुद्ध नहीं हो जाता, तबतक हम भाई-भाईको तरह नहीं रह सकते। मैं चाहता हूँ कि हम स्वार्थको चट्टानपर पटककर अपनी एकताको टुकड़े-टुकड़े न कर दें। किन्तु मेरा विश्वास है कि समस्याका हल हमारे ऊपर निर्भर नहीं है। मैं आशावादी हूँ और मानता हूँ कि इस देशपर ईश्वर कृपा करेगा और इस लड़ाई-झगड़े के बावजूद हमें मिल-जुलकर रहनेकी सामर्थ्य देगा।

हिन्दुओं और मुसलमानोंको अपने-अपने धर्मोमें यह एक बात और दाखिल कर लेनी चाहिए कि हम एक दूसरेके बिना नहीं जी सकते। जिस ईश्वरने सात करोड़ मुसलमानोंको बाईस करोड़ हिन्दुओंके बीच रख दिया है, वह हमपर जरूर दया करेगा और वह हमें न चाहते हुए भी भाई-भाईकी तरह रहनेकी शक्ति देगा।[३]

  1. यह भाषण महाराजाके मलमें आयोजित सभामें मैमनसिंह नगरपालिका व जिला बोर्डकी तरफसे भेंट किये गये मानपत्रोंके उत्तरमें दिया गया था।
  2. यह अंश यंग इंडिया, २८-५-१९२५ में प्रकाशित महादेव देसाईके यात्रा विवरणसे उद्धृत है।
  3. महादेव देसाईके यात्रा-विवरणसे उद्धृत।