पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/१६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

७१. मैमनसिंहके जमींदारोंसे बातचीत[१]

१९ मई, १९२५

यदि आपका अपना धोबी है, अपना सफाई करनेवाला भंगी है तो आपका अपना बुनकर क्यों नहीं है? और अच्छे तथा सुन्दर सूतके लिए आपको अपने ही प्रदेशोंमें अच्छेसे-अच्छे कातनेवाले भी मिल ही सकते हैं।

प्रमुख और शिक्षित व्यक्ति चरखा क्यों नहीं चलाते?

क्योंकि उन्हें गरीबोंके लिए दर्द महसूस नहीं होता और उन्हें दर्द इसलिए नहीं महसूस होता कि वे गरीबोंके कष्ट नहीं जानते। कृपया यह न कहिये कि वे आलसी हैं। उन्हें निठल्ला हमने बनाया है। उनमें जीवनके प्रति दिलचस्पी कैसे पैदा करें। आपको और हम सबको रात-दिन परिश्रम करना चाहिए और उस बच्चेकी तरह अधीर नहीं होना चाहिए जिसने कि आमका बीज बोया, लेकिन जो बीजके जड़ पकड़ने और वृक्षके रूप में तैयार होनेके लिए ६ महीने भी इन्तजार करनेको तैयार नहीं है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २८-५-१९२५
 

७२. एक असाधारण मानपत्र

मुझे भेंट किये गये अधिकांश मानपत्रोंमें ऐसे विशेषण प्रयुक्त किये गये हैं जिनके योग्य मैं नहीं हूँ। उनका प्रयोग न तो उनके लेखकोंके लिए ही लाभप्रद हो सकता है और न मेरे लिए। उनसे मुझे व्यर्थ ही नीचा देखना पड़ता है, क्योंकि मुझे स्वीकार करना पड़ता है कि मैं उनके योग्य नहीं हूँ। जब वे मेरे अनुरूप होते है तब उनका उपयोग अनावश्यक होता है। उनसे मुझमें विद्यमान गुणोंकी शक्ति बढ़ नहीं सकती। यदि मैं सचेत न रहूँ तो उनसे मेरे मनमें आसानीसे घमण्ड आ सकता है। आदमी जो भी अच्छाई करे उसका बखान न करना ही ज्यादा अच्छा है। किसीका अनुकरण करना उसकी सबसे सच्ची सराहना करना है। इसलिए मैं अपने सभी प्रशंसकोंको ऐसा करनेकी सलाह देता हूँ। यदि वे मेरा सूत कातना पसन्द करते हैं तो उन्हें स्वयं सूत कातकर उसकी सराहना करनी चाहिए; यदि वे मेरी नियमबद्धताको पसन्द करते हैं तो उन्हें स्वयं नियमबद्ध बनकर मेरी प्रशंसा करनी चाहिए। और यदि वे मेरी सच्चाई और अहिंसाको मूल्यवान मानते हैं तो उन्हें अपने आचरणसे उनके प्रति अपना प्रशंसा-भाव दिखाना चाहिए।

  1. महादेव देसाई द्वारा प्रस्तुत गांधीजीके यात्रा-विवरणसे उद्धृत।