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एक असाधारण मानपत्र

लेकिन सभी मानपत्रोंमें केवल मेरी प्रशंसाके गीत नहीं गाये जाते। किसी अवसरपर उनसे मुझे मूल्यवान जानकारी मिलती है। चाँदपुरके मानपत्रमें[१] खास बात यह थी कि उसमें वहाँके लोगोंने अपनी कठिनाइयाँ साफ-साफ बताई थीं। मानपत्रमें मेरे असली अथवा काल्पनिक गुणोंका कुछ जिक्र जरूर है, लेकिन उसमें चाँदपुर निवासियोंकी कार्यवाहियोंका ही अधिक विवरण था। विवरण इस प्रकार है:

१. कांग्रेस सदस्योंकी संख्या———श्रेणी "क" १०, श्रेणी "ख" ६८, कुल ७८
२. चालू चरखोंको संख्या २४५
३. प्रत्येक चरखको औसत क्षमता——१०० गज प्रति घंटा, सबसे अधिक गति ५०० गज प्रति घंटा।
४. औसत अंक १२; सबसे ऊँचा अंक १५२।
५. सूतका मासिक उत्पादन——१ मन।
६. हाथ कते सूत तथा अन्य सूतसे चालू खड्डियोंको संख्या एक हजारसे अधिक; केवल सात खड्डियाँ शुद्ध खादी तैयार करती हैं।
७. शुद्ध खादीका मासिक उत्पादन २५० गज।
८. खादी गोदामोंकी संख्या केवल ३।
९. खादीकी खपतका मासिक औसत लगभग ३०० रु॰।
१०. राष्ट्रीय स्कूलों की कुल संख्या ४, विद्यार्थियोंकी कुल संख्या १६७। जहाँतक शराबखोरीका सम्बन्ध है, यह १९२२ से धीरे-धीरे बढ़ रही है।

फिर अधिकतर विषयोंपर एक रोचक टीका है। उसका अन्त निम्नलिखित ढंगसे किया गया है:

हम अनुभव करते हैं कि यदि हम देशकी जनताको घोर निर्धनता तथा उसके फलस्वरूप होनेवाली मौतोंका उल्लेख नहीं करते तो हम अपने कर्तव्यका पालन नहीं करते। लोग भारी कर्जे के बोझसे दबे हुए हैं। उनमें से बहुतोंका हिसाब-किताब देखें तो मालूम पड़ता है कि वे दिवालियेपनको निराशाजनक स्थितिमें पहुँच गये हैं। कुटीर उद्योगोंके पूर्ण विनाशके परिणामस्वरूप लोग बहुधा गम्भीर अपराध करने लगते हैं तथा हम लोगोंकी इस आर्थिक अधोगतिके अन्तिम परिणामोंको सोचकर दहल उठते हैं।

निश्चय ही यह लेखा ऐसा नहीं जिसपर गर्व किया जा सके। लेकिन इसमें निराश होने की भी कोई बात नहीं। हममें से हरएक अपनी शक्तिभर परिश्रम कर सकता है। परिणामपर हमारा कोई वश नहीं है और न हो ही सकता है, क्योंकि वह कई अन्य स्थितियोंपर निर्भर है। वास्तवमें शक्ति-भर उद्योग कर चुकनेके बाद हम

  1. देखिए "भाषण : चाँदपुरकी सार्वजनिक सभामें", १०-५-१९२५।