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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बिलकुल निश्चिन्त हो सकते हैं। दुर्भाग्यसे हममें से अधिकांश काम नहीं करते अथवा उदासीनतासे करते हैं और फिर भी परिणाम बहुत असन्तोषजनक आनेकी शिकायत करते हैं। यदि हम शक्ति-भर प्रयत्न करें तो फिर सब-कुछ ठीक हो जायगा।

यह सच है कि जो समस्याएँ हमारे सामने हैं वे बहुत बड़ी हैं तथा अनेक हैं। एक आदमीके लिए तथा बहुतोंके लिए यह मान लेना कि वे उन सभीको एक बारमें ही सुलझा लेंगे, सर्वशक्तिमान होने का दावा करना है। इस प्रकारका कोई भी प्रयत्न अवश्य ही असफल होगा। हमारी कठिनाइयाँ इसलिए बढ़ जाती हैं कि हमारा राष्ट्र पराधीन है। यदि हम पराधीन न होते तो इनमें से अनेक कठिनाइयाँ दूर को जा सकती थीं। लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि हम तबतक अपना सहज स्वत्व प्राप्त नहीं कर सकते जबतक हम इनमें से अधिकसे-अधिक समस्याओंको अभी सुलझा न लें। स्वराज्य न मिलनेतक उन समस्याओंको हाथमें न लेने का मतलब है स्वराज्य तथा समस्याओंके हल, दोनों ही को टालना। इसलिए वह व्यक्ति, जो मुख्य समस्याओंमें अपनी सम्पूर्ण योग्यतासे सहायता प्रदान करता है, उन्हें हल करने तथा स्वराज्यको निकट लानमें सहायक होता है।

इस प्रकार यदि चाँदपुरके कार्यकर्ताओंने शक्तिभर प्रयत्न कर लिया है तो उन्होंने जो परिणाम बताये हैं, उन्हें निराशाजनक समझनेकी जरूरत नहीं। कुछ समय बीतनेपर उन्हें अवश्य सफलता मिलेगी; क्योंकि ईमानदार और मेहनती कार्यकर्ताओंको दीर्घ उद्योगका फल सदा मिलता ही है। 'क' श्रेणीके १० सदस्योंका होना एक भी सदस्य न होनेसे बेहतर है तथा मैं तो हमेशा ही ऐसे १० सदस्योंका होना बेहतर मानता हूँ बजाय १०,००० ऐसे सदस्योंके जो प्रतिवर्ष ४ आने अदा करें और फिर कांग्रेसके बारेमें कुछ भी न सोचें; केवल इतना ही सोचें कि उन्होंने अपने चार आने खो दिये। यदि दस सदस्य अपने विश्वासपर कायम रहेंगे तो उनकी संख्या शीघ्र ही सौ हो जायेगी। मुझे चरखेके सिवा कोई दूसरी सूरत दिखाई नहीं देती। जिन्हें कोई विकल्प दिखाई देता है वह उसे जरूर करें। जबतक ऐसी योजना सामने नहीं आती, तबतक इन दस व्यक्तियोंको, जो चरखा चलाते हैं, निर्भीक होकर मैदानमें डटे रहना चाहिए।

लेकिन मुझे डर यह है कि प्रबन्धकोंने पूरी मेहनतसे कार्य नहीं किया है। मुझे ज्ञात हुआ है कि चाँदपुरमें लगभग १२० स्वयंसेवक हैं। उनमें से लगभग १०० सूत कातना जानते हैं, किन्तु उनमें से मुश्किलसे पाँच अथवा छ: हो नित्य सूत कातते हैं। एक प्रस्तावके द्वारा स्वयंसेवकों के लिए सूत कातना अनिवार्य कर दिया गया है। किन्तु यदि स्वयंसेवक हो कताई-सदस्यताके प्रस्तावका सर्वथा पालन नहीं करता तो और कौन करेगा? स्वागत-समितिको स्वयंसेवकोंको चुनने में दृढ़तासे काम लेना था। यदि इसे पर्याप्त योग्य व्यक्ति नहीं मिलते थे तो इसे अपना कार्य थोड़ेसे स्वयंसेवकोंसे ही चला लेना था। अनाड़ी डाक्टरका होना डाक्टरके न होनेसे भी बदतर है। उदासीन स्वयंसेवक बहुधा सहायक होनेके बजाय रोड़ा अटकाता है। यहाँ बीचमें ही मैं यह भी उल्लेख कर दूँ कि मेरे प्रति स्वयंसेवकोंका व्यवहार बहुत ही अच्छा था। उन्होंने अपनी शक्ति-भर सेवा की। सेवा और प्रेम कीमती तो दोनों