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कूदनेको तत्पर

नहीं किया जा सकता, क्योंकि आवश्यकताको साबित करना असम्भव है। हम खुद ही इसके काजी नहीं बन सकते। बल्कि वहाँ एकमात्र काजी वे होंगे जिनकी जान हम लेना चाहते हैं। हमारा निर्णय गलत भी हो सकता है। यह अहिंसाके पक्षमें एक अच्छा कारण है। मध्ययुगके ईसाई धर्माधीशोंका अटल विश्वास था कि उनका कार्य धर्मसम्मत है। पर आज हम जानते हैं कि वे सरासर गलतीपर थे।

पाँचवा प्रश्न यह है:

कुरबानी और हत्यामें क्या भेद है?

कुरबानीके मानी हैं, खुद कष्ट सहना, जिससे कि दूसरेको लाभ पहुँचे। हत्याके मानी है, दूसरेको तकलीफ देना——मार डालना, जिससे कि हत्यारे या जिसके लिए हत्या की गई है उसे लाभ हो।

छठा प्रश्न:

क्या जो डाक्टर आपको नश्तर लगाता है वह आपको कुछ समयके लिए तकलीफ पहुँचानेके कारण निन्दाके योग्य है? पर क्या हम उसके चित्तको वृत्ति अर्थात् बीमारको लाभ पहुँचानेके हेतुपर ध्यान रखकर उसके हिंसात्मक कार्यपर ध्यान न देते हुए उसकी और भी अधिक प्रशंसा नहीं करते?

यहाँ हिंसा शब्दका दुरुपयोग है। हिंसाका अर्थ है किसीको बिना उसको रजामंदीके या बिना उसे किसी तरहका लाभ पहुँचाये, चोट पहुँचाना। मेरी बाबत तो चिकित्सकने मेरे ही हितके लिए, मेरी लिखित रजामन्दीसे मुझे कुछ समयके लिए तकलीफ पहुँचाई थी। पर एक क्रान्तिकारी अपने शिकारको उसके भलेके लिए नहीं लूटता, वह उसका वध उसके भलेके लिए नहीं करता——उसे तो वह चोट पहुँचानेके ही काबिल समझता है——हाँ, समाजके किसी कल्पित हितके लिए।

सातवाँ प्रश्न इस प्रकार है :

क्या अन्य बलोंकी तरह शारीरिक बल भी जीवनका एक कारगर साधन नहीं है? जिस प्रकार अहिंसाका आश्रय भीरु लोग अपनी भीरताको छिपानके लिए ले सकते हैं, उसी तरह क्रूर और निरंकुश शासक हिंसाका भी दुरुपयोग कर सकते हैं। किन्तु इससे यह साबित नहीं होता कि हिंसा खुदमें कोई बुरी चीज है।

शारीरिक बल निस्सन्देह जीवनका एक कारगर साधन है। निरंकुश शासकोंने जरूर ही हिंसाका दुरुपयोग किया है। परन्तु हिंसाको जो व्याख्या मैंने की है उसमें तो उसके सदुपयोगकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। इससे पहलेवाले सवालके जवाबमें इसकी परिभाषाको देखिए।

आठवाँ प्रश्न:

पागलों तथा भयंकर अपराधियोंको, जो समाजको हानि पहुँचाते हैं, आप जेल भेजेंगे तो क्या आप हमें उन सभ्य अपराधियोंको जो सरकारी अफसरोंके रूपमें काम कर रहे हैं, मारनेके बजाय गिरफ्तार करने तथा हिमालयको किसी गुफामें ले जाकर कैद रखनकी इजाजत देंगे?