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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं नहीं कह सकता कि पागलों और मुजरिमोंको, वे खतरनाक हों या मामूली, जेलमें रखना अर्थात् सजा देना ठोक ही है। पागल तो अब भी इस तरह नहीं रखे जाते। पर हम तेजीसे उस समयके नजदीक पहुँच रहे हैं जबकि मुजरिमोंको भी सजा देनेके खयालसे नहीं बल्कि उनको अन्तमें सुधारने के लिए बन्दिशमें, न कि जेलमें, रखा जायेगा। पर हाँ, मैं उस संघमें खुशीसे शामिल होऊँगा, जो वाइसराय और हरएक ऐसे असैनिक अंग्रेज अथवा हिन्दुस्तानीको, जो जानबूझकर या अनजाने ही आज भारतको निष्प्राण अथवा रक्तहीन बना रहे हैं, ऐसे जेलोंमें भेजनेके लिए कायम होगा, जहाँ उनकी सुख-सुविधाका पूरा ध्यान रखा जायेगा; पर शर्त यह है कि मेरे सामने ऐसी तजवीज पेश की जाये जो हर तरह व्यावहारिक हो। बेशक मैं ऐसे संघमें शरीक होने के लिए तैयार हूँ; लोग चाहे यह भले कहने लगे कि उन्हें इस प्रकार कारावासमें रखना मेरी ही व्याख्याके अनुसार हिंसात्मक कार्य होगा।

नवाँ प्रश्न इस प्रकार है:

इनमें से कौन-सी बात अधिक अमानुषिक और भयंकर है? या यों कहा जाये कि कौन-सी अधिक हिंसात्मक है? ३३ करोड़ मानवकष्ट भोगते रहें, उनको उन्नतिके सब द्वार बन्द रहें और उनको यों ही सड़ते-गलते मर मिटने दिया जाये या कुछ हजार लोगोंका वध होने दिया जाये? आप किस बातको ज्यादा अच्छा समझेंगे? अधःपतन होते-होते ३३ करोड़ जनताका धीरे-धीरे लोप हो जाना या कुछ सौ लोगोंका संहार कर दिया जाना? हाँ, यह अवश्य सिद्ध करना होगा कि कुछ सौ व्यक्तियोंको मौतके घाट उतार देनसे ३३ करोड़ लोगोंका अधःपतन रुक जायेगा परन्तु यह बात तो तफसीलकी है, उसूलकी नहीं और इस बातका विवेचन आगे चलकर किया जा सकता है कि ऐसा करना बुद्धिमत्तापूर्ण होगा या नहीं, परन्तु यदि यह साबित कर दिया गया कि कुछ सौ लोगों को मार डालनेके परिणामस्वरूप ३३ करोडका अधःपतन रोका जा सकता है तो क्या आप वैसी हिंसापर आपत्ति करेंगे?

कोई भी सिद्धान्त, यदि वह पूरी तौरसे अच्छा, कल्याणप्रद न हो तो सिद्धान्त कहलाने योग्य नहीं है। मैं अहिंसाकी दुहाई इसलिए देता हूँ कि मैं जानता हूँ कि अकेले उसीकी बदौलत मानवजातिका सर्वश्रेष्ठ हित सधता है——परलोकमें ही नहीं, इहलोकमें भी। मैं हिंसाके सम्बन्धमें आपत्ति इसलिए करता हूँ कि उसके द्वारा हित होता हुआ दिखाई देता है, परन्तु वह अस्थायी होता है और उससे उत्पन्न होनेवाली बुराई स्थायी होती है। मैं नहीं मानता कि एक-एक करके अंग्रेजोंका खून कर देनेसे भारतवर्षको किंचिन्मात्र भी लाभ पहुँच सकता है। यदि कोई तमाम अंग्रेजोंको कल ही मार डाले तो भी करोड़ों लोग, आजकी तरह ही दुःखी बने रहेंगे। मौजूदा हालतके लिए अंग्रेजोंकी बनिस्बत हमारी जिम्मेवारी ज्यादा है। यदि हम सिर्फ अच्छा-ही-अच्छा करते रहे तो अंग्रेज बुरा करने में अशक्त हो जायेंगे। इसीलिए मैं आन्तरिक सुधारपर निरन्तर जोर देता रहता हूँ।

परन्तु क्रान्तिकारीके सामने तो मैं अहिंसाको नैतिकताके सर्वोच्च आधारपर सर्वथा उचित सिद्ध करनेकी कोशिश नहीं करता बल्कि कार्य-साधकताके निम्नतर