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७४. टिप्पणियाँ

अभिनन्दन-पत्र देनेवाले ध्यान दें

मैं बार-बार यह कह चुका हूँ कि मुझे दिये जानेवाले अभिनन्दन-पत्रपर जब चौखटा लगा होता है या जब वे कीमती डिब्बेमें रखे जाते हैं तब यात्रामें उनको रखना मुश्किल हो जाता है। फिर भी लोग मुझे भारी-भारी चौखटे और कभी-कभी कीमती मंजूषाएँ देते ही जा रहे हैं। जहाँतक वेश कीमती होनेका सम्बन्ध है, कलकत्ता निगम इस बारे में सबसे ज्यादा गुनहगार है। मुझे वहाँ अभिनन्दन-पत्र मांगकर लाये सोनेके पत्रपर दिया गया था; क्योंकि निगम द्वारा बनवाया गया सोनेका पत्र तब-तक तैयार नहीं हो पाया था। अब इस यात्रामें देशबन्धुने मुझे वह सुन्दर सुवर्ण-पत्र दिया जिसपर पूरा अभिनन्दन-पत्र अंकित है। इसे पाते ही मुझे हैरानी हुई कि इसे रखूगा कहाँ? और यही बात उनके बारेमें भी सही थी; हालाँकि वह दिया गया था उनके उसी पुराने भवनमें। जब वे जाने लगे तो वे महादेव देसाईको अलहदा बुलाकर कह गये कि सुवर्ण-पत्र सुरक्षित जगह रखा जाये। सौभाग्यसे सतीश बाबू मुखर्जी मेरे पास थे। मैं उनसे सुवर्ण-पत्रकी बात पहले कह चुका था। उन्होंने उसे अपने जिम्मे ले लिया। यह पत्र भी वहीं जायेगा जहाँ मुझे प्राप्त दूसरी कीमती चीजें गई हैं। जिन मित्रोंको मैंने ये सब चीजें सौंपी है, वे अभी इस बातका फैसला नहीं कर पाये हैं कि वे उन्हें बेचें या किसी अजायबघरमें रखें। जो लोग मुझे अभिनन्दन-पत्र देना चाहते हों, यह जानकर कि मैं बेशकीमती चीजें रख नहीं सकता, कम खर्चपर तैयार अभिनन्दन-पत्र ही दिया करें तो कितना अच्छा हो। और चौखटे? उनको तो यात्रामें उठाये फिरनेमें बहुत ही असुविधा होती है। बहुतेरे मित्रोंने तो इस बातको समझ लिया है और अब वे खादीपर छपे अभिनन्दन-पत्र देने लगे हैं। मेरी समझमें यह सबसे सीधा-सादा और अच्छा तरीका है। खादी तो मैं अपने साथ चाहे जितनी ले जा सकता हूँ। जितने भी अभिनन्दन-पत्र उसपर छपेगे उतना ही खादीका प्रसार होगा। अगर खादीके अभिनन्दन-पत्रके साथ भी मंजूषा देना जरूरी हो तो मैं भविष्यमें अभिनन्दन-पत्र देनेवालोंका ध्यान फरीदपुरके उदाहरणकी ओर दिलाता हूँ। वहाँ नगरपालिका और जीवशिव मिशनने सस्ती बाँसकी नलियोंमें अभिनन्दन-पत्र रखकर दिये थे। एक नली चितकबरी थी और दूसरीपर चटाई चढ़ाई हुई थी और सिरोंपर चाँदीके सादे ढक्कन लगे थे। ये चाँदीके ढक्कन भी आसानीसे छोड़े जा सकते थे। सादीसे-सादी चीज भी उस जरा-सी कलाके स्पर्शसे सुरूप हो सकती है जिसे हम अपने आसपासके जीवनसे सीख सकते हैं। हिन्दुस्तानमें ग्रामजीवनका स्तर यद्यपि गिर गया है, तथापि उसमें अब भी इतनी कला और कवित्व है कि हम उसका अनुकरण कर सकते हैं। त्रावणकोरमें तो लोगोंने ताड़के पत्तोंसे खूब काम लिया था। यों तो मैं सभी अभिनन्दन-पत्रोंके बारेमें कलायुक्त सादगी रखनेकी