पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/१७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सलाह दूँगा; परन्तु मुझे दिये जाने वाले अभिनन्दन-पत्रोंके बारेमें तो इसका आग्रह ही करना चाहता हूँ, क्योंकि कोमती और भारी डिब्बे और चौखटे अपने पास रखनेकी सुविधा और इच्छा मुझे नहीं है।

औंधी छूतछात

एक पत्र-लेखक लिखता है :

आपने एक पत्र-प्रेषकके इस प्रश्नका उत्तर दिया है कि स्वयं अछूतोंके बीच प्रचलित छूतछात कैसे मिटाई जा सकती है। मैं इसी प्रकारका दूसरा प्रश्न रखना चाहता हूँ।
कदाचित् आपको मालूम नहीं है कि कुछ अछूत स्वयं सवर्णके छूनमें अथवा उसके निर्धारित मर्यादासे अधिक निकट जानमें, अथवा उसके कुएंसे पानी भरनेमें, अथवा उसके मन्दिरमें प्रवेश करनेमें अथवा सवर्णके सम्बन्धमें कोई भी ऐसा कार्य करनेमें, यद्यपि उसके लिए आज्ञा मिल चुकी हो तथा उन्हें निमंत्रित भी किया गया हो, एक तरहका पाप समझते हैं। 'अछूत' सोचता है कि यदि वह कोई भी ऐसा कार्य करेगा तो उससे मर्यादाका उल्लंघन होगा और वह पापका भागी होगा। यह छूतछात सामान्य रूपसे प्रचलित उस छूतछातसे उलटी है जो छोटी जातियोंके खिलाफ ऊँची जातियोंमें (स्पृश्यों और अस्पृश्योंमें) पाई जाती है। यह औंधी अस्पृश्यता है । यह हो सकता है कि इस प्रकारको अस्पृश्यतामें (जिसके बारेमें कुछ ही लोग जानते हैं, लेकिन जो उतनी ही तीव्र है जितनी कि अन्य प्रकारको अस्पृश्यता) प्रतिशोधको भावना न हो, और सवर्ण लोग यह सोचकर प्रसन्न भी हो सकते हैं। फिर भी यह मौजूद तो है ही; 'मैचेस्टर गाजियन' के विशेष संवाददाताने भी, जिसने सन् १९२२ में आपसे साबरमती जेलमें भेंट को थी[१] तथा भारतका दौरा किया था, गुजरातके आनन्द और बारडोली ताल्लुकोंमें इसे देखा था। समझमें नहीं आता कि आप अस्पृश्यता-निवारणका कार्य करनेवाले कार्यकर्ताओंको इस प्रकारकी उलटी अस्पृश्यतासे अछूतोंको मुक्त करनेका क्या उपाय बतायेंगे? क्या अस्पृश्यताकी तरह यह भी एक पाप नहीं है? जिसे हम मर्यादा धर्म कहते हैं, क्या वह ही इस प्रकार हमारे रास्तेमें नहीं आता? क्या कोई सच्चा अछूत, जो इस धर्म विश्वास रखता है, डूबते ब्राह्मणको अन्यथा समर्थ होते हुए भी बचा सकता है ?

मैं अस्पृश्यताके इस नृशंसतापूर्ण परिणामसे अनभिज्ञ नहीं हूँ, जिसका संवाददाताने उल्लेख किया है। कभी-कभी मैं देखता हूँ कि मेरा स्पर्श करना तो दूर रहा अस्पृश्योंको मेरे पास आनेमें कठिनाई होती है। मैं यह नहीं मानता कि अछूतों द्वारा सवर्णोंको

  1. देखिए खण्ड २३, पृष्ठ १११-११८।