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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बातोंमें हमारा सम्बन्ध राज्यसे पड़ता है। हमारे नैतिक जीवनपर राज्यका असर पड़ता है। इसलिए समाजका सबसे बड़ा हितैषी और सेवक होनेके कारण संन्यासीका ताल्लुक राजा-प्रजाके बीचके सम्बन्धोंसे आये बिना नहीं रह सकता——अर्थात् उसे प्रजाको स्वराज्य प्राप्त करनेका रास्ता दिखाना ही चाहिए। इस तरह विचार करनेपर स्वराज्य किसीके लिए गलत आदर्श नहीं है। लोकमान्यने देशको, हममें से तुच्छसे-तुच्छको, जो सबसे बड़ा सत्य सिखाया वह है उनका दिया मन्त्र : "स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है"। संन्यासी तो स्वयं स्वराज्य-प्राप्त होता है, इसलिए उसका रास्ता दिखानेके लिए वही सबसे योग्य है। संन्यासी दुनियामें रहता है, परन्तु वह दुनियादार नहीं होता। जीवनके तमाम महत्त्वपूर्ण कार्यो में उसका आचरण साधारण मनुष्योंके जैसा होता है; सिर्फ उसकी दृष्टि जुदी होती है। हम जिन बातोंको रागपूर्वक करते हैं उन्हें वह वीतराग होकर करता है। वीतराग होनेका प्रयत्न हम सब लोगोंके लिए कर्तव्य है। निश्चय ही हर व्यक्तिके लिए यह एक उपयुक्त आकांक्षा

जानवरोंके प्रति निर्दयता

अब चूँकि मैंने अखिल भारतीय गोरक्षा-मण्डलके संचालनका बड़ा बोझ अपने सिरपर ले लिया है, मेरे पास गोरक्षा विषयक पत्र खूब आने लगे हैं। उसके फलस्वरूप मेरा पत्र व्यवहार पहलेसे भी और भारी हो गया है। मैं यहाँ एक नमूना देता हूँ:[१]

मैं कलकत्ताकी सड़कोंसे होकर बहुधा निकला हूँ। लेखकने गाड़ियोंमें जोते जानेवाले बैलों, भैंसों तथा घोड़ोंके विषयमें जो-कुछ लिखा है वह बिलकुल सत्य है। लेखकने मालिकोंपर जो लांछन लगाये हैं उनमें अतिशयोक्ति नहीं है, यद्यपि मेरी रायमें मालिक उनसे जान-बूझकर निर्दयताका व्यवहार नहीं करते, वे सिर्फ लापरवाह हैं। युक्तिकी बात वे भी मान सकते हैं जैसे कि माल-ढुलाई करनेवाले और गाड़ीवान मान लेते हैं। प्रश्न यह है कि उनतक कैसे पहुँचा जाये। नगरपालिकाकी हदमें काममें लाये जानेवाले जानवरोंकी हालतकी देखभाल करनेका कार्य सम्बन्धित नगरपालिकाका है। तथापि गैर सरकारी उपकारी संस्थाएँ भी मालिकोंको पत्र लिख सकती हैं और उनसे मुलाकात कर सकती हैं तथा जहाँ भी शिकायतका कारण हो उसे दूर करने का अनुरोध कर सकती हैं। मुझे विश्वास है कि लगातार निगाह रखने तथा सम्बन्धित लोगोंसे विचारपूर्ण अनुरोध करनेसे काफी सफलता मिल सकती है।

मुर्गियोंके बच्चों तथा टर्कियों हालतकेको विषयमें मुझे कुछ भी नहीं मालूम। लेकिन यदि ऐसा अपराध नगरपालिकाके बाजारमें किया जाता है तो निगम आसानीसे उसकी रोकथाम कर सकता है। मनुष्यों द्वारा मूक जीवोंके प्रति जो निर्दयता बरती जाती है वह मानवीय शक्तियोंके उचित संगठनसे काफी हदतक रोकी जा सकती है। बंगाल

  1. यहाँ नहीं दिया गया है। बंगाल प्रान्तीय महिला परिषद्की ओरसे भेजे गये इस पत्रमें कलकत्तामें पशुओंके प्रति जो निर्दयता बरती जाती है, उसका विस्तृत वर्णन था; और गांधीजीसे इस विषयमें टीका करनेका अनुरोध किया गया था।