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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

खद्दर, अस्पृश्यता और हिन्दू-मुस्लिम एकताके त्रिसूत्री कार्यक्रमपर जोर देनके बाद उन्होंने अपना भाषण समाप्त किया।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, २३-५-१९२५

७७. भाषण : दीनाजपुरके विद्यार्थियोंके समक्ष

२१ मई, १९२५

एक मित्रने मुझसे कहा कि उनके मनमें जब कामविकार उत्पन्न होता है तब वे उसको शान्त करनेके लिए चरखा उठा लेते हैं। एक दूसरे मित्र कहते हैं कि उन्हें जब कभी क्रोध चढ़ता है तब वह चरखा चलानेसे शान्त हो जाता है। इसका अर्थ यह है कि ब्रह्मचर्यकी रक्षाके लिए जिस शान्तिको आवश्यकता होती है वह चरखसे मिल जाती है। दो-तीन दिन पहले मुझे दो-एक लड़कोंने कहा, "हमसे चरखा नहीं चलाया जाता; हम तो फाँसीपर चढ़ने के लिए तैयार है। आप हमें कोई ऐसा कार्य बतायें जिसका हमपर नशा चढ़ जाये।" मुझे ऐसा लगा कि ये विद्यार्थी ब्रह्मचर्यका पालन करने वाले नहीं हैं, क्योंकि चरखे-जैसी शान्तिपोषक वस्तु इनको अच्छी नहीं लगती। मुझे तो लगता है कि जीवनको सत्यनिष्ठ, निर्मल, शान्त और सेवामय बनानेकी सामग्री चरखेमें निहित है। इसलिए मैं आप सबसे यह अनुरोध करता हूँ कि आप सूत कातनेके रूपमें आधा घंटेका श्रम अवश्य करें।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ३१-५-१९२५

७८. भेंट : दीनाजपुरके जमींदारसे[१]

२१ मई, १९२५

यह पूछनेपर कि क्या आप अपने बारडोलीके निर्णयको गलत मानते हैं, गांधीजीने जोरदार शब्दोंमें उसका नकारात्मक उत्तर देते हुए कहा :

वह निर्णय मेरे जीवनके सबसे अधिक समझदारीके कार्योमें से एक है। भावी इतिहासकार मुझे भारतके सबसे अधिक नाजुक समयमें भारतको बचानेवाला मानेंगे। यदि मैंने वह कदम न उठाया होता तो भावी सन्तति मुझे एक राजनीतिक नेताके वेषमें सबसे बड़ा दानव मानती और भारत आगामी कई एक पीढ़ियों तकके लिए अन्धकारमें

  1. महाराजाके अथितिगृहमें हुई इस भेटमें गांधीजी हिन्दी और अंग्रेजीमें बोले। मूल हिन्दी विवरण उपलब्ध नहीं है।