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भाषण : बोगड़ाकी सार्वजनिक सभामें

भी है लेकिन वह अस्थायी है और वह उस सृजनकारी शक्तिके सामने सदा व्यर्थ सिद्ध होती है जो शाश्वत है। यदि विनाशकारी शक्ति अधिक प्रबल होती, तो सभी पवित्र प्रेमसम्बन्ध——माता-पिता और बच्चेके बीच, भाई-बहनोंके बीच शिक्षक और शिष्यके बीच, शासकों और शासितोंके बीच——समाप्त हो जाते। अहिंसा सूर्यके समान है, जिसकी पूजाको हमारे ऋषियोंने गायत्रीमें परमेश्वरके प्रतीक-रूपमें चिरस्थायी कर दिया है। जिस प्रकार सूर्य नित्य परिक्रमण करते हुए और अन्धकार, पाप तथा ग्लानिको दूर करते हुए "मनुष्यकी नश्वरताका साक्षी बना रहता है", उसी प्रकार अहिंसाको समझिए। अहिंसा आपको ऐसे प्रेमकी प्रेरणा देती है जिससे बड़े जोश या साहसकी, बात आप सोच भी नहीं सकते। और इसीलिए इस चरखेमें जो शान्ति और प्रेमका प्रतीक है, ज्यों-ज्यों मै वृद्ध होता जाता हूँ, मेरी आस्था बढ़ती जा रही है। और इसीलिए मैं नहीं समझता कि आपसे बात करते समय मेरा चरखा कातना कोई अनुचित काम है। चरखा घुमाते हुए मैं स्वयं अपने से कह रहा हूँ, "परमात्मा जब कि वह असंख्य लोगोंको भूखा रखे हुए है, मुझे नित्यकी रोटी क्यों देता है? वह या तो मुझको भी भूखा रखे या फिर मुझे उनकी भूख मिटाने योग्य शक्ति दे।" मैं चरखा चलाकर अहिंसा और सत्यका, जो एक ही सिक्केके दो बाजू है, आचरण करता हूँ। अहिंसा मेरा परमेश्वर है और सत्य भी मेरा परमेश्वर है। जब मैं अहिंसापर निगाह उठाता हूँ, सत्य कहता है : "उसे मेरे जरिये प्राप्त करो।" जब मैं सत्यकी खोज करता हूँ तो अहिंसा कहती है : "उसे मेरे जरिये प्राप्त करो।"

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ४-६-१८२५
 

८०. भाषण : बोगूड़ाकी सार्वजनिक सभामें

२२ मई, १९२५

महात्माजीने अभिनन्दन-पत्रोंका[१] जवाब देते हुए उनके लिए धन्यवाद दिया और आश्वासन दिया कि वे खद्दर सस्ता करने और गरीबोंको मुफ्त चरखे बाँटनेके लिए प्राप्त थैलो खादी प्रतिष्ठानको सौंप देंगे। इस सम्बन्धमें महात्माजीने डॉ॰ प्रफुल्लचन्द्र रायकी, जिनके साथ १९०१से उनके सम्बन्ध थे, प्रशंसा की। महात्माजीने कहा कि स्वर्गीय श्री गोखलेने मेरा परिचय उनसे कराया था और तबसे हमारे पारस्परिक सम्बन्ध दृढ़ होते गये। इसलिए यह मुनासिब ही है कि इस जिलेमें दौरा करना मैं अपना सौभाग्य समझें, क्योंकि इससे मुझे गरीबोंके लिए डॉ॰ रायने जो शानदार काम किये और आज भी कर रहे वह याद आ जाते हैं।

  1. यह अभिनन्दन-पत्र नगरपालिका, जिलाबोर्ड और जनताकी ओरसे भेंट किये गये थे।