महात्माजीने यह भी कहा कि दीनाजपुर और बोगूड़ामें पहली बार मैंने अमीर-गरीब, पिता और छोटे लड़के-लड़कियों, अछूतों और ब्राह्मणों आदि सबको साथ-साथ बैठकर देशकी खातिर सूत कातते देखा, जिससे चरखमें मेरी आस्थाको और भी बल मिला है। उन्होंने कहा कि यह देशके लिए शुभ शकुन है।
अमृतबाजार पत्रिका, २४-५-१९२५
८१. भाषण : तलोडामें[१]
२२ मई, १९२५
मैंने बोगूड़ाकी सभामें कहा था कि मेरा वहाँ जाना मेरे लिए तीर्थयात्रा जैसा था। इस बातको मैं यहाँ फिर दुहराता हूँ। श्री रायके स्वार्थ-त्यागको जितना मैं जानता हूँ उतना कदाचित् आप न जानते हों और जब मुझे यह पता लगा कि वे जिन अनेक कामोंको कर रहे हैं उनमें से एक काम यह भी है, तभी मैंने एक बार यहाँ आनेका निश्चय कर लिया था। इसके अलावा जब मैंने यहाँ आकर यह देखा कि उनके कार्यसे जिन लोगोंको सहायता मिली है, उनमें मुसलमान अधिक हैं तो मेरी प्रसन्नताका और उनके प्रति मेरी श्रद्धाका पार न रहा; क्योंकि यदि हिन्दू मुसलमानोंकी ऐसी सेवा करें और मुसलमान हिन्दुओंको तो दोनोंमें अपने आप सौहार्द हो जायेगा। मुझे बहुत दुःख है कि इस दुर्लभ दृश्यको देखने के लिए यहाँ मेरे भाई शौकत अली या मुहम्मद अली नहीं हैं। आज इस समय देशकी स्थिति ऐसी विषम है कि हम कार्यकर्ताओंको अपना-अपना काम छोड़कर बाहर निकलना कठिन हो गया है। किन्तु मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं है कि मैं जब उन दोनों बन्धुओंको यहाँका समाचार सुनाऊँगा तो उनको बहुत प्रसन्नता होगी।
नवजीवन, ७-६-१९२५
- ↑ यहाँ डा॰ प्रफुल्लचन्द्र राय एक खादी केन्द्र चलाते थे।