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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है कि जैसी प्रजा होती है वैसा राजा होता है। जहाँ-जहाँ मैंने अन्याय होता देखा है, वहाँ-वहाँ प्रजाका दोष अर्थात् प्रजाकी कमजोरी भी देखी है। मैंने प्रजासत्तात्मक राज्यमें भी अन्याय होते देखा है; और उसमें प्रजाकी कमजोरी देखी है। पृथ्वीमें आज ऐसे प्रजासत्तात्मक राज्य मौजूद हैं, जहाँ मनमानी अन्धाधुन्धी चल रही है और जहाँ हर हाकिम राजा बन कर बैठ गया है।

मैंने यह नहीं चाहा है कि निरंकुश राज्य कायम रहें। अंकुश कैसा और कितना होना चाहिए इसका विचार राजा और प्रजाको कर लेना चाहिए। जहाँ प्रजा जाग्रत है, वहाँ अन्याय असम्भव होता है। जहाँ प्रजा सुप्त है, वहाँ राज्यतन्त्र कैसा भी हो, अन्याय तो रहेगा ही। देशी राज्य निर्मल और पूरी तरह न्यायवान हो सकते हैं। उसके लिए हमारे पास रामराज्यका उदाहरण मौजूद है। आजकलके देशी राज्योंमें जो अपूर्णता दिखाई देती है उसका कारण एक ओर प्रजाको अपूर्णता है और दूसरी ओर अंग्रेजी राज्यतन्त्रकी अपूर्णता। इसलिए देशी राज्योंकी अन्धाधुन्धीपर आश्चर्य नहीं हो सकता। परन्तु इस तरह दोनों अपूर्णताओंका असर होते हुए भी कितने ही देशी राज्योंके शासनतंत्रका चमक उठना क्या देशी राज्योंकी नीतिमत्ताका सूचक नहीं है? मेरे लिखने और कहनेका आशय सिर्फ इतना ही है कि देशी राज्योंमें कोई बात संग्रहणीय नहीं है और उनको मिटा देना ही उचित है, यह खयाल ठीक नहीं है। देशी राज्योंमें सुधार करनेकी बहुत-कुछ गुंजाइश है और वे सुधार करनेसे आदर्श राज्य बन सकते हैं। मेरे कहनेका यह आशय हरगिज नहीं है कि जिस हालतमें वे आज हैं, उसीमें वे बने रहें।

एक जमींदारकी सेवाएँ

चौधरी रघुवीरनारायण सिंह मेरठके जमींदार हैं। उन्होंने असहयोगके दिनोंमें जो त्याग किया था, वह अभीतक कायम है। उनका पूरा परिवार खादी-प्रेमी है। उन्होंने बेलगाँवमें यह प्रतिज्ञा की थी कि वे अप्रैलसे पहले कांग्रेसके ५०० सूत कातनेवाले सदस्य बनायेंगे। उन्होंने इस प्रतिज्ञाके सम्बन्धमें लिखा है :[१]

यह सच है कि चौधरीजी सूत कातनेवाले ५०० सदस्य स्वयं नहीं बना सके हैं। फिर भी उनका उत्साह अनुकरणीय है। यदि बहुत-से धनी लोग इस कार्यमें भाग लें तो सूत कातने और खादी तैयार करनेका काम बहुत तेजीसे चल सकता है।

जैन मुनि और चरखा

जैन मुनि चरखा चला सकते हैं या नहीं, इस बारे में पालीताणामें हुई बात-चीतका जो समाचार 'नवजीवन' में छपा था[२], उसके सम्बन्धमें मेरे पास कई पत्र

  1. यहाँ नहीं दिया गया है। पत्र-लेखकने इस बातपर खेद प्रकट किया था कि वे अपने बड़े भाईकी वीमारी और मृत्युके कारण अपनी प्रतिज्ञा पूरी नहीं कर सके हैं। उन्होंने गांधीजीको विश्वास दिलाया था कि उनका खादीके प्रति प्रेम बना रहेगा। उन्होंने साथ ही इस सम्बन्धमें किये गये अपने कार्यका विवरण भी दिया था।
  2. देखिए खण्ड २६, पृष्ठ ४५७-५९।