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९०. कुछ त्रुटियाँ

मैं बंगालके जीवनको जितना ही अधिक देखता हूँ उतना ही अधिक यह अनुभव करता हूँ कि वहाँ तमाम दिशाओंमें भारी सम्भावनाएँ मौजूद हैं। उसने संसारका सबसे बड़ा आधुनिक कवि उत्पन्न किया है और उसने दो विज्ञानाचार्योंको जन्म दिया है, जो संसारके सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिकोंमें[१] माने जाते हैं। उसमें संगीतज्ञ भी ऐसे हैं जिनको मात करना मुश्किल है। उसने ऐसे-ऐसे चित्रकारोंको उत्पन्न किया है जिनकी कला भारतके एक कोनेसे दूसरे कोनेतक व्याप्त हो गई है। आत्म-बलिदानका श्रेय भी उसे इतना प्राप्त है कि महाराष्ट्र भी उसका मुकाबला नहीं कर सकता। जब मैंने उन क्रान्तिकारी[२] महाशयको जवाब दिये थे, तब मैंने अपनी आँखोंसे यह नहीं देखा था कि कार्यकर्त्ता लोग फसली बुखारके प्रदेशोंमें सिर्फ खाना-कपड़ा लेकर लोगोंके बीच किस लगनके साथ काम कर रहे हैं। मुझे इसका बिलकुल पता न था कि यहाँ ऐसे नवयुवक भी हैं जो दरिद्रता और अभावोंके बीच इस तरहकी जिन्दगी बसर कर रहे हैं और बीमारियोंने उनके शरीरमें इस कारण घर कर लिया है कि उन्हें अच्छे पौष्टिक भोजन या अच्छी आबहवामें रहनेकी सुविधा नहीं है। अब मैंने ऐसे मुकाम और ऐसे लोग देख लिये हैं। बंगालमें क्या स्त्री और क्या पुरुष, दोनोंमें कातनेके लिए एक खास प्रतिभा है। मैंने दोनोंको चाँदपुर, चटगाँव, महाजनहाट, नवाखली, कोमिल्ला, ढाका और मैमनसिंहमें काम करते हुए देखा है। मोटे तौरपर कहा जा सकता है कि हर जगह मैंने उनके कामको, भारतके हर हिस्सेसे जहाँ-जहाँ मैं हो आया हूँ, श्रेष्ठ पाया है। कातना उनका पेशा नहीं है और न वे कातनेके आदी ही हैं। क्योंकि उनमें से बहुतेरे तो यदि मेरे विनोदके लिए नहीं तो मेरा मान बढ़ानेके लिए अथवा मुझे खुश करनेके भावसे चरखा कातने आये थे। और फिर भी उनका काम बुरा नहीं था। उसके विधिवत् ज्ञानके बिना उनकी बुद्धि, शक्ति और त्यागका अपव्यय अवश्य हो रहा है। वहाँके अधिकांश चरखे भद्दे, कुरूप और ढीले-ढाले थे। या तो वे अच्छी तरह नहीं चलते थे या भारी चलते थे और उनसे तकुएको ज्यादासे-ज्यादा नहीं, बल्कि कमसे-कम चक्कर मिलते थे। फलस्वरूप बहुत ही कम सूत निकल पाता था। मैंने ऐसे एक चरखेपर पूरे तीस मिनटतक सूत काता। मैं आध घंटे में औसतन १३० गज कात लेता हूँ, पर बंगालके उस चरखे पर सिर्फ ३० गज ही कात पाया। यदि चरखा अच्छा हो तो इससे तिगुना सूत आसानीसे निकल सकता है। किसी भी व्यक्ति या राष्ट्रके लिए उसकी आमदनीका किसी भी दिये हुए समयमें तिगुना हो जाना कम लाभ नहीं है। बंगालमें बहुत अच्छे और सस्ते चरखे सुलभ हैं। खादी प्रतिष्ठानका तैयार किया चरखा बहुत बढ़िया

  1. डॉ॰ जगदीशचन्द्र बोस तथा डॉ॰ प्रफुल्लचन्द्र राय।
  2. देखिए "फिर वही", ७-५-१९२५।