पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/१९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है उस मानेमें मैं पूरा समय काम करनेवाला कांग्रेसका सेवक बन जाता तथा हमारी वैतनिक राष्ट्रीय सेवाकी कोई सुविधा होती तो मैं दूसरोंको प्रोत्साहन देनेके लिए सबसे पहले अपना नाम वैतनिक सेवकोंकी सूचीमें लिखाता। हमने अभीतक इस प्रकारकी सेवा स्थापित नहीं की है तथा मुझे समस्त भारतके लिए अथवा गुजरात तकके लिए वैसी योजना बनानेमें बहुत-सी व्यावहारिक कठिनाइयोंका सामना करना पड़ा है। मैंने अनेक बार इसकी योजनापर विचार किया और मुझे वह विचार तुरन्त छोड़ भी देना पड़ा। इसलिए पत्रलेखकको खिलाफत दफ्तरसे अपने ईमानदारीसे किये हुए कामके बदले में वेतन लेनेपर आत्मग्लानि नहीं होनी चाहिए। यदि इससे उसको सान्त्वना मिले तो मैं उसे बताता हूँ कि अलीभाई जब खिलाफत समितिके निर्देशसे यात्रा करते थे तो उससे यात्राका भत्ता अवश्य लेते थे। उसे यह जानकर भी सान्त्वना मिलनी चाहिए कि मैंने जब खिलाफत समितिके कामके सिलसिलेमें अली भाइयोंके साथ दो या तीन बार यात्रा की थी तो मेरी यात्राका खर्च खिलाफत समितिने ही उठाया था। मैं उस समय भी अपने दोस्तोंकी मदद ले सकता था, लेकिन मैंने अपनेको खिलाफती टुकड़ीका सदस्य कहनेमें अपना सम्मान समझा था। यदि अली भाइयोंने खिलाफत समितिसे अपने वैयक्तिक खर्च वसूल नहीं किये तो इसका कारण यह था कि वे खिलाफत समितिसे न्यायपूर्वक जितना ले सकते थे उससे उनका यह खर्च बहुत ज्यादा होता था। यदि वे समितिसे अपने ये खर्च वसूल करते तो यह एक बुरी नजीर होती।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २८-५-१९२५
 

९२. टिप्पणियाँ

हकीम साहब

हकीम अजमलखाँ साहबका मार्सेल्ससे उर्दूमें लिखा एक खत मुझे मिला है। मैं सम्बद्ध अंशका अनुवाद दे रहा हूँ:

बम्बईसे १० अप्रैलको सवार होकर आज २२ अप्रैलको मार्सेल्स पहुँचा। रास्तेमें मेरी तन्दुरुस्ती अच्छी ही रही। चलते वक्त आपसे न मिलनेका अफसोस है। खुदाको मंजूर हुआ तो यह खुशी फिर वापसीपर हासिल होगी। उस वक्त मुझे बहुत शर्म आयेगी, जब मुझसे इस सफरमें कोई शख्स हिन्दुस्तानका हाल दरयाफ्त करेगा; इसलिए कि मेरा जवाब इसके सिवा और क्या हो सकता है कि आजकल हिन्दुस्तान बहुत पस्त हालतमें है और उसकी दो मशहूर मगर बदकिस्मत कौमें आपसमें खूब दिल खोलकर लड़ रही हैं। काश वे भाई, जो इस खाईको चौड़ा कर रहे हैं, हिन्दुस्तान और एशिया पर, बल्कि खुद अपनी-अपनी कौमोंपर रहम करें और अपनी कोशिशोंका रुख