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नेकीकी तरफ फेरकर बेजान कांग्रेसमें जान डालें। डॉ॰ अन्सारी अच्छे हैं——और इस सफरसे खुश मालूम होते हैं।

जो लोग हकीम साहबकी नेकदिलीसे वाकिफ हैं वे जरूर हमारे आपसके झगड़ोंपर इनकी तरह ही दुखी होंगे।

'जुगल-जोड़ी'

इन दिनों अली भाइयोंमें से कोई भी यात्रामें मेरे साथ नहीं है। इसपर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो खयाल करते हैं कि मेरा इस जुगल जोड़ीसे, जैसा मौ॰ मुहम्मद अली स्वयंको और अपने भाई शौकत अलीको कहकर खुश होते हैं, कुछ मतभेद हो गया है। इस बातसे जमानेकी हालत जाहिर होती है। नवाखलीमें तो कुछ भाइयोंने मुझसे कहा कि लोगोंको शक है कि आपका अली भाइयोंसे खुला मतभेद हो गया है। मैंने उनसे कहा कि ऐसी कोई बात नहीं हुई है और न होने की कोई सम्भावना है। यदि कभी ऐसा हुआ भी तो मैं उसको उसी तरह फौरन जाहिर कर दूँगा जिस तरह मैंने उनसे अपनी दोस्ती जाहिर की है। पर मैं पाठकोंको सावधान कर देना चाहता हूँ कि यदि वे निराशासे बचना चाहते हैं तो ऐसी कोई आशा या आशंका अपने मनमें न रखें। दोस्ती यों आसानीसे नहीं होती और टूटती तो और भी मुश्किलसे है। वह जबरदस्त तनाव बर्दाश्त कर सकती है। वह जिस चीजको बर्दाश्त नहीं कर सकती, वह है बेईमानी या बेवफाई। कोई यह खयाल न करे कि मेरे और मौ॰ शौकत अलीके बीच कोहाटके मामलेमें मतभेद होनेसे हमारे ताल्लुकात बिगड़ गये हैं। यदि हममें से किसीने एक-दूसरेको खुश करनेके लिए अपनी सच्ची राय प्रकट न की होती तो हमारी मित्रता झूठी मित्रता होती।

स्वभावतः दूसरा प्रश्न यह किया गया, 'तब फिर उनमें से कोई आपके साथ क्यों नहीं है?' मैंने प्रश्नकर्तासे कहा कि मौ॰ शौकत अली बम्बईसे तबतक नहीं निकल सकते जबतक वे खिलाफत समितिकी टूटी नावकी मरम्मत न कर लें और मौ॰ मुहम्मद अली अपने दोनों अखबारोंके कामसे नहीं छूट सकते; उनपर इनका बोझ उनकी शक्तिसे ज्यादा पड़ रहा है। इसके अलावा असली बात यह है कि आज हमारे लिए हमेशा साथ रहनेकी जरूरत उतनी ज्यादा नहीं है जितनी १९२०-२१में थी। बल्कि उसके खिलाफ आज तो हरएक कार्यकर्ताको अपने-अपने सुपुर्द किये गये काममें ही लगे रहनेकी जरूरत है। कार्यक्रम देशके सामने मौजूद है। उसे पूरा करना है। मैं एक इन्स्पेक्टर जनरलको तरह घूम-फिरकर देखता हूँ कि नये मताधिकारपर किस तरह अमल किया जा रहा है। मैं इसलिए घूम रहा हूँ कि मैं स्वयं नये मताधिकारकी कीमतको जाँच व परख सकूँ। सभापति-पदका भार सिरपर उठानेके कारण तो मैं ही इस वर्ष जहाँ-कहीं मेरी जरूरत हो वहाँ, सम्भव हो तो किसी मुसलमान मित्रके साथ अन्यथा उसके बिना ही, धूम-फिरकर इस कार्यको सबसे ज्यादा अच्छी तरह कर सकता हूँ। जहाँतक हिन्दू-मुसलमान सवालका ताल्लुक है, मुझे जो-कुछ कहना था वह मैं कह चुका हूँ। मैंने दवा बता दी है। अभी तो वह नाकाफी रही है। इसलिए अब मुझे इन्तजार करते हुए देखते रहना है और ईश्वरसे प्रार्थना