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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करते रहना है। मैं उसके सम्बन्धमें अपने कर्त्तव्यका पालन सिर्फ अपने सिद्धान्तको सामने रखकर या पुष्ट करके कर रहा हूँ। मैं अपनी सारी शक्ति सिर्फ चरखेके प्रचार और अछूतोद्धारमें खर्च कर रहा हूँ।

बैलगाड़ी और चरखा

बंगालके दौरे में मेरे सम्मुख चतुर बंगालियोंकी ओरसे चरखेके विरुद्ध सभी प्रकारकी चतुराई-भरी युक्तियाँ पेश होती रही हैं। इन पृष्ठोंमें अधिकांश युक्तियोंपर विचार किया जा चुका है। लेकिन चूँकि पाठकोंको अखबारोंमें पढ़ी बात कभी-कभी याद नहीं रहती, अत: यदि पत्रकार उसी बातको समयका उचित व्यवधान देकर दोहराये तो वह सदा हितावह ही होता है। एक दोस्तने मुझसे पूछा था कि क्या आप रेलका स्थान बैलगाड़ियोंको देना चाहते हैं? यदि ऐसा नहीं है तो आप यह आशा कैसे कर सकते हैं कि कारखानोंका स्थान चरखा ले लेगा। मैंने उनसे कहा कि मैं रेलोंके स्थानपर बैलगाड़ियाँ नहीं चलाना चाहता, क्योंकि मैं चाहनेपर भी वैसा नहीं कर सकता। ३० करोड़ बैलगाड़ियोंसे लम्बी-लम्बी दूरियाँ जल्दी तय नहीं की जा सकतीं। लेकिन मैं कारखानोंका स्थान चरखेको दे सकता हूँ। इसका कारण यह है कि रेलोंका सम्बन्ध रफ्तारसे है। किन्तु मिलोंके मामलेमें प्रश्न उत्पत्तिका है। जिस देशमें काम करनेवालोंकी संख्या काफी हो, जैसी कि भारतमें है, तो चरखा आसानीसे स्पर्धा कर सकता है। मैंने उनसे कहा, वस्तुस्थिति यह है कि एक ग्रामीण अपने लिए पर्याप्त कपड़ा कारखानोंसे भी सस्ता तैयार कर सकता है, बशर्ते कि वह अपने श्रमका मूल्य न लगाये। उसे ऐसा करनेकी आवश्यकता भी नहीं है, क्योंकि वह अपने फाजिल समयमें ही सुत कातेगा अथवा कपड़ा बुनेगा। यह ध्यान देने योग्य बात है कि झूठी तथा अपूर्ण तुलनाओंसे लोगोंको कैसे धोखा होता है। इस मामलेमें एक ओर मिलों और रेलोंका अन्तर तथा दूसरी ओर चरखे और बैलगाड़ियोंका अन्तर इतना स्पष्ट है कि उनकी तुलना करना ही उचित नहीं है। लेकिन कदाचित् इस मित्रका विचार यह है कि मैं यथासम्भव हर स्थितिमें सभी तरहकी मशीनोंके उपयोगका विरोधी हूँ। कदाचित् उनके ध्यानमें रेलोंके विरुद्ध मेरी वे आपत्तियाँ थीं, जिनका उल्लेख मैंने अपनी 'हिन्द स्वराज्य' पुस्तिकामें किया है। यों मैं बार-बार कह चुका हूँ कि मैं उस पुस्तिकामें चर्चित भिन्न-भिन्न बुनियादी समस्याओंका हल नहीं सोच रहा हूँ।

शक्तिका अपव्यय

एक अन्य तर्क यह दिया गया है कि चरखा चलाना शक्तिका अपव्यय है। यह एक आश्चर्यजनक तर्क है जो बिना विचारे दिया गया है। मैं बता चुका हूँ कि जो कार्य किसी उद्देश्यको सम्मुख रखकर किया जाता है उसे शक्तिका अपव्यय नहीं माना जा सकता। चरखा राष्ट्रके सम्मुख उन लाखों करोड़ोंको धन्धा देनेके लिए रखा गया है जिनके पास सालमें कमसे-कम चार महीने कोई काम नहीं रहता। मैंने आपत्तिकर्तासे यह भी कहा कि चरखेसे हर आधा घंटे में कमसे-कम १०० गज सूत काता जा सकता है। यदि केवल इस बातको ही ध्यानमें रखकर सोचें तो भी