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चरखा चलाना व्यर्थका काम नहीं माना जा सकता। वह व्यर्थका काम नहीं है इतना ही नहीं, बल्कि वह एक ठोस आर्थिक योजना भी है। इसका कारण यह है कि आज तो लाखों-करोड़ों लोगोंके लिए जरूरत ही किसी ऐसे धन्धेकी है, जिसे सभी कर सकें और जिसके लिए किसी विशेष कुशलता या लम्बे प्रशिक्षणको आवश्यकता न हो। ऐसा धन्धा सूत कातना ही हो सकता है, उसके सिवा दूसरा नहीं।

विकास और ह्रास

नवाखली जिला खद्दरके कार्यका एक अच्छा विकास केन्द्र बन सकता है। स्पष्ट है कि वहाँ जब खद्दरका कार्य प्रारम्भ किया गया उससे पूर्व बहुत-कुछ कार्य हो चुका था। इस कार्यके विकास और ह्रासकी निम्न रिपोर्ट, जो मुझे नवाखलीमें दी गई थी, अवश्य ही सामान्यतः सभीके लिए दिलचस्प होगीः[१]

इससे जो निष्कर्ष निकलता है, वह स्पष्ट है। कार्यकर्त्ताओंको हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। उन्हें तमाम कठिनाइयोंके होते हुए भी अपना काम उसी प्रकार जारी रखना चाहिए, जैसे सूझ-बूझवाला कोई धनी व्यापारी रखता है। जबतक खादी रिवाजमें नहीं आ जाती, हमें स्वेच्छासे वैसा ब्यापारी बन जाना चाहिए, व्यक्तिगत लाभके लिए नहीं बल्कि देशके लाभके लिए। खद्दरका कार्य कांग्रेसको परिवर्तनशील दलीय राजनीतिसे अलग होना चाहिए। कांग्रेस अपना कार्यक्रम चाहे पचास बार बदले लेकिन चरखा और खद्दरका कार्यक्रम न बदले, क्योंकि उसपर लाखों गरीब तथा मूक प्राणियोंका भाग्य निर्भर है।

पतित बहनें और चरखा

नवाखलीमें मुझे बताया गया कि दो पतित बहनें चरखा चला रही हैं, यही नहीं, बल्कि उसीसे अपना गुजारा कर रही हैं। वे नवयुवतियाँ नहीं हैं, उनकी उम्र ४० से ऊपरकी है। वे अब शरीर बेचकर अपना पेट नहीं भर सकतीं। अत: चरखा न चलाती तो उन्हें भीख माँगकर पेट पालना पड़ता। अत: सच पूछे तो चरखेने उन्हें भीख माँगनेसे विरत किया है, उनके मूल धन्धेसे नहीं। फिर भी नवाखलीके लोगोंके लिए यह एक भारी बात है कि वे इन बहनोंसे साबका रखते हैं और उनके हितमें इतनी दिलचस्पी लेते हैं। मुझे यह भी बताया गया कि ऐसी कुछ और बहनें भी चरखा चलाने लगी हैं, यद्यपि उन्होंने अपना पेशा नहीं छोड़ा है। मेरी समझमें यदि वे बहनें अपना धन्धा न छोड़ें तो चरखा चलानेसे उनके लिए कोई लाभ नहीं हो सकता। वह उनके अनुचित धन्धेपर पर्दा डालनेका काम अवश्य कर सकता है। इसके अलावा, यह निर्विवाद बात है कि उनके लिए चरखेकी सिफारिश रोजी कमाने के जरियके तौरपर नहीं की जा सकती। वे अधिक नहीं तो १ से

  1. यह रिपोर्ट यहाँ नहीं दी गई है। इसमें कपास उत्पादन करनेवाले इस जिलेके सम्बन्धमें कहा गया था कि वहाँ ५५,००० बुनकर है। वहाँ खादोकी खपत कम हो जानेसे उत्पादन घट गया है। यदि जिलेमें इस कार्यको संगठित किया जाये और उसके लिए पर्याप्त धन और कार्यकर्ता हों तो वहाँ इसके विकासकी बहुत सम्भावना है।