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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

२ रुपयातक रोज कमाती रही हैं। उन्हें बुनाई, कसीदा या कोई दूसरा दस्तकारीका काम सीखना चाहिए जिससे उन्हें मुनासिब आमदनी हो सके। फिर यह सवाल ऐसा भी नहीं है कि जिसे पुरुष अपने हाथ में ले सके। यह काम नारियोंके लिए ही छोड़ना होगा। वे अपने को इसके योग्य सिद्ध करें। जबतक असाधारण चरित्रबलको कोई नारी आगे आकर इन पतित बहनोंके उद्धारका कार्य अपने हाथमें न लेगी तबतक वेश्यावृत्तिकी समस्या हल नहीं हो सकती। हाँ, इसमें कोई सन्देह नहीं कि पुरुष उन पुरुषोंको समझा सकते हैं जो अपनी वासनाकी तृप्तिके लिए इन युवतियोंको अपने शरीर बेचनेके लिए ललचाकर स्वयं पतित होते है। वेश्यावृत्ति सदासे चली आ रही है; पर वह आजकी तरह नगर-जीवनका एक नियमित अंग शायद ही कभी रही हो। कुछ भी हो, वह समय आये बिना नहीं रह सकता जब मानवजाति इस पापके खिलाफ आवाज उठायेगी, और वेश्यावृतिको बिलकुल मिटा देगी, जिस तरह उसने अबतक कितनी ही पुरानी कुप्रथाओंसे अपना पीछा छुड़ा लिया है।

मेरठमें कताई

चौधरी रघुवीर नारायणसिंह मेरठसे लिखते हैं कि उन्होंने बेलगांवमें नये मताधिकारके अन्तर्गत ५०० नये सदस्य बनानेका वादा किया था; परन्तु वे अपने भाईकी भारी बीमारी और बादमें मृत्युके कारण———मुझे इस समाचारसे खेद है——मीयादके अन्दर उसे पूरा न कर सके। अब स्वराज्यवादी वकील बा॰ ज्योतिप्रसाद तथा दूसरे मित्रोंकी सहायतासे उन्होंने ६४७ सदस्य बना लिये हैं। इनमें २०० खुद कातनेवाले हैं। जितना हुआ सो तो बेशक ठीक ही है; परन्तु मैं चौधरीजीको याद दिलाता हूँ कि उन्हें तो ५०० खुद कातनेवाले सदस्य बनाने हैं। आशा है कि वे तथा उनके साथी इस बातको ध्यानमें रखकर तबतक दम न लेंगे जबतक मेरठमें कातनेवाले सदस्योंकी उतनी संख्या पूरी न हो जाये। चौधरीजी यह भी लिखते हैं कि हमने यहाँ मर्दो और औरतोंकी कताई प्रतियोगिताका आयोजन कराया है और उनमें बहुतसे लोगोंने हिस्सा लिया है। वे कहते हैं कि यद्यपि तरक्की धीरे-धीरे हो रही है पर कुल मिलाकर वह हो तो लगातार ही रही है। उन्होंने कताई और बुनाई-धुनाई सिखानेका भी प्रबन्ध किया है।

ईश्वरके नामपर चरखा

बौरिंगपेटके कुछ नौजवानोंने 'रामनवमी' सप्ताहमें कता अपना ३,२०० गज सूत मुझे भेजा है। उन्होंने लिखा है, 'इन दिनोंमें इस रामनाम जपके समारोहने बालक और वृद्ध सभीने भाग लिया था; किन्तु हमने उसमें भाग लेनेके साथ-साथ सुत भी काता है।' उनका यह उदाहरण अनुकरणीय है। मैं ऐसे कितने ही नवयुवकों- को जानता हूँ जो चरखा चलाते समय ईश्वरका ध्यान करते हैं। जो लोग यज्ञार्थ कातते हैं, वे तो उसके साथ तमाम ऊँचे और अच्छे विचारोंको जोड़ सकते हैं। ढाकामें मेरे मौनके दिन कुछ संगीतज्ञ मुझे सितारवादन सुनाने आये। सोमवार खाली मौनवार ही नहीं, बल्कि वह मेरा सम्पादन कार्यका दिन भी होता है। सो उनका सितारवादन सुनने के लिए समय देना मेरे लिए मुश्किल ही था। परन्तु मैं उन्हें