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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वह है जो अर्थहीन और अनुपयोगी होती है। दूसरी तरहकी भावुकताका उदाहरण इस पत्रमें मिलता है:[१]

मुझे इस नवयुवक स्नातकसे सहानुभूति है; लेकिन मैं यह कहे बिना नहीं रह सकता कि आत्महत्या करना, जिसकी वह बात कहता है, पाप है। सभी अनशन सराहनीय नहीं होते। आत्मबलिदानका इच्छुक आत्महत्या द्वारा स्वराज्यको प्राप्तिमें सहायता नहीं कर सकता, यही नहीं बल्कि उसके आत्महत्याके अपराधसे उसमें रुकावट ही पड़ेगी। इससे प्रकट होता है कि उसमें आत्मविश्वासकी कमी है। मैं उसकी सरकारी नौकरी न करनेकी प्रतिज्ञाका सम्मान करता हूँ। लेकिन निश्चय ही उसका विकल्प केवल आत्महत्या ही नहीं है। यदि उक्त राष्ट्रीय स्कूल उसका भरण-पोषण नहीं करता तो उसके लिए ईमानदारीसे रोजी कमाने तथा अपने माता-पिताका भरण-पोषण करनेके और अनेक तरीके हैं। क्या उसमें हाथसे मेहनत करनेका मनोबल है? मैं ऐसे किसी भी ईमानदार तथा काम करनेके इच्छुक कार्यकर्ताको नहीं जानता जिसे किसी राष्ट्रीय अथवा सार्वजनिक संस्था अथवा गैरसरकारी फर्ममें उचित कार्य न मिल सका हो। मैं जानता हूँ कि राष्ट्रीय कार्यको पूर्णरूपसे विकसित करने के लिए ऐसे ईमानदार और मेहनती नवयुवक तथा नवयुवतियोंकी आवश्यकता है, जो वेतन लेकर सेवा करनेके लिए तैयार हों। यह नवयुवक जुलाहे अथवा बढ़ईका काम कर सकता है और मजदूरीसे खासा पैसा कमा सकता है। उदाहरणार्थ वह खादी प्रतिष्ठानको अर्जी दे सकता है और यदि उसमें आवश्यक योग्यता है तो उसे उसमें काम मिल ही जायेगा। नवयुवकोंको तो कभी निराशाका शिकार होना ही नहीं चाहिए। उनमें आत्मविश्वास होना चाहिए और उन्हें जानना चाहिए कि वास्तविक योग्यताका पुरस्कार अवश्य मिलता है।

१०० वर्ष पुराना चरखा

कोमिल्लामें मुझे एक चरखा दिखाया गया था जो १०० साल पुराना बताया गया, किन्तु जो अबतक चालू अवस्थामें है। चरखेकी वर्तमान मालकिन एक विधवा है जिसकी अवस्था ५८ वर्षसे भी अधिक है। वह चरखा उसकी दादीने उसकी माँ को दिया था। उसकी वर्तमान मालकिन १४ वर्षकी अवस्थामें विधवा हो गई थी। वह स्वयं सूत कातकर उससे अपने लिए और अपने परिवारके अन्य लोगोंके लिए कपड़ा बुनवा लेती थी। कहा जाता है कि उसने अपने तथा अपने परिवारके अन्य लोगोंके लिए कभी विदेशी वस्त्र नहीं खरीदा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २८-५-१९२५
  1. यह पत्र यहाँ नहीं दिया गया है। इसमें एक राष्ट्रीय स्कूलके निराश शिक्षकने लिखा था कि मैं बड़ी दुविधामें पड़ा हूँ कि असहयोगी बना रहूँ या अपने परिवारकी खातिर सरकारसे सहयोग करूँ। कृपया आप मुझे सलाह दें कि मातृभूमिकी मुक्ति और अपने परिवारके कल्याणार्थ मेरे लिए आमरण अनशन करना उचित होगा या नहीं।