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९३. भाषण : कलकत्ताकी सार्वजनिक सभामें[१]

२८ मई, १९२५

महात्माजीने एकत्र जनसमुदायके समक्ष भाषण देते हुए कहा कि मैं आप लोगोंसे एक बात कह चुका हूँ, नहीं मालूम, आपने उसे सुना या नहीं। मैं अब आपसे एक बात और कहना चाहूँगा, उसे आप कानोंसे सुनें; मैने जो-कुछ आपको पहले बताया था वह आपने नेत्रोंसे सुना है। मैंने आपको अपना चरखेका एकमात्र सन्देश कातकर दिखा ही दिया है और उस सम्बन्धमें मुझे उससे अधिक और कुछ नहीं कहना है। एक कहावतका अर्थ और महत्त्वका उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि यदि आप सिनमा जायें और अभिनेताओं, अभिनेत्रिओंका अभिनय पर्देपर देखें, लेकिन उस चित्रकी भावना और उपदेशको हृदयंगम न करें, उसे अपने जीवनमें न उतारें, तो इस प्रकार सिनमा देखनेसे क्या लाभ? किसीकी कथनीका, यदि वह उसे अपनी करनी नहीं उतारता, कुछ भी महत्त्व नहीं है। इसलिए मुझे जो-कुछ कहना था और जो-कुछ डॉ॰ नायडूने कहा था, उसे मैंने अपने हाथोंसे करके समझाया।

आगे बोलते हुए महात्माजीने कहा कि यदि मैंने जो-कुछ करके दिखलाया है, उससे ज्यादा कुछ कहना भी पड़े तो मुझे बड़ा दुःख होगा। बंगालके दौरेसे पहले मैंने जनताके सामने अपने सन्देशका प्रदर्शन कार्य द्वारा नहीं किया, लेकिन फरीदपुरसे मैंने वैसा करना शुरू कर दिया है। आप लोगोंने मुझे बारीक और मोटा सूत कातते हुए देखा। मेरा इरादा आपको केवल अपना सूत दिखाना नहीं है वरन् आपको अपने अभ्याससे प्रभावित करना है ताकि आप उस अभ्यासको अपने जीवनमें उतारें और उसीके अनुसार काम करें। मैं कलकत्ताके नागरिकोंके बीच बैठा हूँ लेकिन मेरा मन सदा बंगालके दूर-दूर बसे हुए गाँवोंमें कष्ट भोग रही जनताके ही बीच पड़ा रहता है। मैं आम जनतासे, गरीब किसानोंसे, पद-दलित अछूतोंसे घुल-मिलकर रहना चाहता हूँ। अपना चरखा कातते और भजन करते समय मेरा मन पूर्वी बंगालकी उन गरीब स्त्रियोंकी बात सोचता है जो भुखमरीसे पीड़ित हैं; वह उन पद-दलित ग्रामीणोंके पास होता है जिनके साथ अछूतों-जैसा बरताव होता है। मेरे कारण वे भूखों मर रहे हैं और आपके कारण उन्हें हररोज पेट-भर भोजन नहीं मिलता। हम लोग ही इसके कारण हैं। मैं उनके साथ मिल-जुलकर रहना चाहता हूँ और उनके दुःखोंका कारण जानना तथा दुःखोंसे उन्हें मुक्ति दिलानेमें मदद करना चाहता हूँ।

  1. सभा शामको भवानीपुरमें हरीश पार्कमें हुई थी। गांधीजीने जवाहरलाल नेहरू और डा॰ वरद-राजुलु नायडूके बोल चुकनेके बाद सभामें भाषण दिया था।