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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

श्री गांधीने फिर बहुत ही प्रामाणिकताके साथ विस्तारपूर्वक अपना मन्तव्य समझाकर बताया। अन्समें कविने उनसे अपने चरखे और खद्दरके कार्यक्रमको भी विस्तारसे समझानेके लिए कहा।

श्री गांधोने पूर्वी बंगालमें अपने अनुभवोंका वर्णन किया और बताया कि कताईके पुनरुत्थानसे वहाँके गांवोंमें नये जीवनका संचार हुआ है। स्पष्ट ही कवि इससे बहुत प्रभावित हुए क्योंकि उनका हृदय हमेशा ही ग्रामीणोंके कष्टोंसे द्रवित रहता आया है। श्री गांधीने साफ-साफ समझाया कि शिक्षितवर्गसे मैं केवल इतना ही चाहता हूँ कि वे प्रतिदिन निश्चित समयपर थोड़ी देर इसलिए सूत कातें कि अपने गरीब और दलित मानव भाइयोंके प्रति उनको सहानुभूति सजीव रूपमें व्यक्त हो। उन्होंने जिस महान कार्यका बीड़ा उठाया है उसमें कविकी अमूल्य मदद मांगी। परस्पर अत्यन्त मैत्रीपूर्ण अभ्यर्थनाके बाद भेंट समाप्त हुई।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, २-६-१९२५
 

९७. टिप्पणियाँ

काठियावाड़का चन्दा

काठियावाड़ियोंको खादी-प्रचारके निमित्त २०,००० रुपये इकट्ठे करने थे। भाई मणिलाल कोठारीने मुझे तार द्वारा सूचित किया है कि यह रुपया इकट्ठा हो गया है। उनके सबसे बादमें आये हुए तारसे विदित हुआ है कि 'एक मित्रने कपास खरीदनेके लिए ५,००० रुपये दिये हैं तथा ऊपरसे गरीबोंको मुफ्त चरखे बाँटनेके लिए १,००० रुपये और दिये हैं। यह रकम आपके द्वारा प्राप्त चन्देको मिलाकर २०,००० रुपये हो जाती है।' निश्चित की गई यह राशि इतनी शीघ्रतासे इकट्ठी कर लेनेपर मैं काठियावाड़ियोंको और भाई मणिलालको धन्यवाद देता हूँ।

कैदी प्रागजी देसाई

भाई कल्याणजी, जो अभी कराची जेलमें भाई प्रागजी देसाईसे मिलकर वापस आये है, लिखते हैं :[१]

पत्रमें इशारा यह है कि दक्षिण आफ्रिकामें प्रागजी भाईका जेलका पहला अनुभव था, इसलिए वे वहाँ उत्तेजित हो जाते थे। अब तो वे पक्के हो गये हैं फिर उनका मन शान्त क्यों न रहे?

  1. यहाँ नहीं दिया गया है। लेखकने इसमें लिखा था कि जेलमें प्रागजी भाई आरामसे हैं। उसके द्वारा उन्होंने गांधीजीको यह कहलाया था कि अब वे वैसे कैदी नहीं हैं, जैसे दक्षिण आफ्रिकामें थे।